क्या म.प्र. से गायब हो गए मानव अधिकार आयोग और बाल अधिकार आयोग ?

वौइस् ऑफ़ मप्र

मामला भीषण गर्मी में बच्चों को स्कूल बुलाने का

सिंगोली(माधवीराजे)। इन दिनों लगातार बढ़ रहे तापमान और भीषण गर्मी के बावजूद भी मध्यप्रदेश के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को 16 जून से स्कूलों में बुलाने का सरकारी फरमान है तो मामले में चुप्पी क्यों है? क्या मध्यप्रदेश से मानव अधिकार आयोग और बाल अधिकार आयोग दोनों ही गायब हो गए हैं क्योंकि पूरे प्रदेश में सब तरफ यही चर्चा है कि विद्यालयों के खोले जाने के कैलेंडर वर्ष पर आवश्यकता है पुनः मंथन करने की।16 जून की अपेक्षा 1 जुलाई से स्कूल शुरू करना क्यों न्यायसंगत है ?भारत जैसे उष्ण कटिबंधीय देश में जहां मौसम का स्वभाव अत्यंत चरम होता है वहां विद्यालयों के शैक्षणिक सत्र की तिथियां केवल परंपरा नहीं बल्कि बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए तय होनी चाहिए।वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जब तापमान अक्सर 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच रहा हो यह अत्यावश्यक हो गया है कि विद्यालयों के खुलने की तिथि पर पुनः मंथन किया जाए।भीषण गर्मी में पढ़ाई क्या यह बालहित में है ? यह अत्यंत विचारणीय है।गर्मी की चरम स्थिति विशेषकर मई-जून में बच्चों के लिए अत्यंत कष्टप्रद और स्वास्थ्य के लिए घातक हो सकती है।अत्यधिक तापमान में लू लगने का खतरा बढ़ जाता है,निर्जलीकरण (डिहाइड्रेशन) और थकावट आम हो जाती है,बच्चों की एकाग्रता और सीखने की क्षमता घट जाती है।ऐसे समय स्कूलों में बैठना,यातायात से गुजरना और खुली गर्म हवाओं का सामना करना बच्चों को न केवल शारीरिक कष्ट देता है बल्कि दीर्घकालिक रूप से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव भी छोड़ सकता है।आखिर क्यों 1 जुलाई से विद्यालय खोलना अधिक उपयुक्त है क्योंकि मानसून की शुरुआत जून के अंत या जुलाई की शुरुआत में मानसून सक्रिय हो जाता है जिससे तापमान में गिरावट आती है,ठंडी हवाएं और वर्षा बच्चों के लिए अपेक्षाकृत अनुकूल वातावरण प्रदान करती हैं।छुट्टियों की सार्थकता तो इसी में है कि मई-जून की छुट्टियाँ यदि पूरी गर्मी में दी जाएँ तो उनका वास्तविक उद्देश्य बच्चों को गर्मी से बचाना सार्थक होता है वहीं शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार,ठंडे मौसम में बच्चों की ऊर्जा,ध्यान और उत्साह में स्वाभाविक रूप से वृद्धि होती है जिससे शैक्षणिक सत्र की शुरुआत बेहतर ढंग से हो पाती है।परिवर्तन समय की मांग है कि आज जब हम नई शिक्षा नीति की बात कर रहे हैं,समावेशी और बाल-केंद्रित शिक्षा की पैरोकारी कर रहे हैं तो यह आवश्यक है कि विद्यालयों के कैलेंडर पर भी उसी संवेदनशीलता से विचार किया जाए।01अप्रैल से नया शिक्षा सत्र हो,यह विचार प्रशासनिक दृष्टिकोण से सहज लग सकता है लेकिन बच्चों की शारीरिक क्षमता,सामाजिक परिवेश और मौसम की कठोरता को देखते हुए 1 जुलाई से सत्र शुरू करना अधिक न्यायसंगत और मानवतावादी निर्णय है।विद्यालयों के खोले जाने का निर्णय किसी भी प्रदेश की शैक्षणिक दृष्टि,प्रशासनिक दूरदर्शिता और बच्चों के प्रति उसकी संवेदनशीलता का आईना होता है।जब तक हम भीषण गर्मी में बच्चों को विद्यालय भेजने को एक आवश्यकता नहीं बल्कि एक असंवेदनशीलता मानकर सुधार नहीं करेंगे तब तक शिक्षा केवल पाठ्यक्रम की पूर्ति बनकर रह जाएगी,जीवन निर्माण नहीं।इसलिए 1 जुलाई से विद्यालय खोलना न केवल व्यावहारिक है, बल्कि बच्चों के जीवन और स्वास्थ्य के प्रति एक न्यायपूर्ण कदम भी है लेकिन उन अफसरों का क्या जो वातानुकूलित कक्षों में बैठकर मानव अधिकार और बाल अधिकार विरोधी तुगलकी फरमान जारी कर रहे हैं इसलिए लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनप्रतिनिधियों द्वारा मामले में हस्तक्षेप करके बच्चों के हित में निर्णय लिए जाने की आवश्यकता महसूस होने लगी है अन्यथा लालफीताशाही के तुगलकी फरमान मासूम बच्चों के लिए जानलेवा साबित हो सकते हैं।

संबंधित खबरे