नीमच। सकारात्मक गुणों को विकसित करना, चरित्र निर्माण, सीखने की इच्छा और मैत्रीपूर्ण स्वभाव जैसे - सकारात्मक गुणों को विकसित करना ही व्यक्तित्व विकास कहलाता है। किसी भी देश के सांस्कृतिक मूल्य, मानदण्ड और सामाजिक-सांस्कृतिक परम्पराएं व्यक्तित्व विकास के मुख्य निर्धारक है। इसमें चरित्र निर्माण का सर्वाधिक योगदान होता है।’ उक्त विचार भारतीय राजस्व सेवा के वरिष्ठतम अधिकारी एच.एन. मीणा ने कोलकाता (प.बं.) से श्री सीताराम जाजू शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, नीमच द्वारा आयोजित राष्ट्रीय वेबीनार में प्रथम मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किये। श्री मीणा ने अपने व्याख्यान में कहा कि आज की युवा पीढ़ी को भौतिक संसाधनों के बीच स्वयं के चरित्र निर्माण पर ध्यान देना होगा।भारतीय संस्कृति में मानव मूल्यों को विशेष स्थान दिया गया है जो व्यक्तित्व एवं चारित्रिक गुणों के द्योतक हैं। मनुष्य का सशक्त चरित्र और व्यक्तित्व विकास उसकी सफलता का सबसे बड़ा आधार होता है। उच्च शिक्षा विभाग, भोपाल द्वारा प्रायोजित इस राष्ट्रीय वेबीनार का विषय ‘‘व्यक्तित्व विकास एवं चरित्र निर्माण’’ रखा गया था। जिसमें पूरे देश के विभिन्न राज्यों से लगभग 232 विद्वान प्रतिभागियों ने सहभागिता कर वेबीनार की सफलता को ऊंचाईयां प्रदान की।वेबीनार की दुसरी मुख्य वक्ता नवाबों के शहर लखनऊ (उ.प्र.) से श्री दुर्गा शिक्षा निकेतन डिग्री कॉलेज देवारी रूख की प्राध्यापिका डॉ0 शालिनी मिश्रा ने अत्यन्त ही सरल भाषा में बोलते हुए कहा कि समाज हमारे दृष्टिकोण, विश्वास, नैतिकता, चरित्र और आदर्शां को आकार देता है। जीवन जीने की प्रक्रिया और समाजीकरण की प्रक्रिया के साथ मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास होता है। सोश्यल मीडिया हमारे देश के युवाओं के चरित्र एवं जीवन शैली को प्रभावित कर रहा है। अपने कॅरियर एवं जीवन का लक्ष्य स्पष्ट नहीं होने से युवा वर्ग अपने लक्ष्यों से भटक रहा है। सामाजिक एवं पारिवारिक वातावरण व्यक्ति के व्यक्तित्व एवं चरित्र को अत्यधिक प्रभावित करता है। शिक्षा के साथ युवा शक्ति का सकारात्मक दिशा में चरित्र निर्माण समाज व देश के सर्वांगीण विकास के लिये अत्यन्त आवश्यक है। राष्ट्रीय वेबीनार में उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश आंध्रप्रदेश आदि राज्यों से 232 प्रतिभागियों ने सहभागिता की तथा समय-सीमा के कारण कुल 12 प्राध्यापकों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये। वेबीनार के प्रारम्भ में महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ0 एन0के0 डबकरा एवं वेबीनार के संयोजक डॉ. पी.सी. रांका ने ज्ञान की देवी मॉं सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्ज्वलित किया। संगीत विभाग की प्राध्यापिका डॉ0 अमृता सोनी ने बहुत ही मधुर स्वर में सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। उसके पश्चात् महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ0 एन0के0 डबकरा ने अतिथि वक्ताओं एवं प्रतिभागियों के लिये स्वागत भाषण देते हुए कहा कि व्यक्तित्व विकास एक सतत् प्रक्रिया है, जिसे आपका ज्ञान, आपकी वाणी, वेशभूषा, व्यवहार के तरीकों, रूचियों क्षमताओं, उद्देश्यों तथा व्यक्तिगत कौशल आदि को शामिल किया जाता है लेकिन चरित्र व्यक्तित्व का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग है। बेवीनार के मुख्य संरक्षक एवं उच्च शिक्षा, उज्जैन संभाग के अतिरिक्त संचालक डॉ0 एच.एल. अनिजवाल ने व्यस्तता के बावजूद वेबीनार की सफलता के लिये हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित की है।वेबीनार के संयोजक डॉ0 पी.सी. रांका ने वेबीनार का शानदार संचालन करते हुए कहा कि इत्र, मित्र, चित्र और चरित्र किसी की पहचान के मोहताज नहीं होते हैं। ये चारों अपना परिचय स्वयं देते हैं। चाय एवं चरित्र गिर जाये तो उसके दाग को मिटाना बहुत ही मुश्किल होता है। वेबीनार के सफल आयोजन में समिति के सदस्य प्रो0 विजया वधवा, डॉ0 रश्मि हरित, प्रो0 हीरसिंह राजपूत एवं डॉ0 देवेश सागर के साथ तकनीकी समिति श्री गुणवन्त पाटीदार, श्रीमती कुसुम मालवीय, श्री नरेन्द्र शर्मा, श्रीमती दिव्या अग्रवाल आदि की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वेबीनार में आभार प्रदर्शन प्रो0 हीरसिंह राजपूत ने किया।