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 भू-खण्ड की जमीन का सीमांकन सम्भव नहीं है - राजस्व निरीक्षक 

संदिग्ध हो गई राजस्व की कार्यशैली

सिंगोली । राजस्व विभाग में कार्यरत कर्मचारियों का दायित्व बनता है कि वे भू-खाता धारकों के जमीन सम्बन्धी विवादित मामलों का निराकरण विधिपूर्वक निष्पक्ष कार्यवाही कर करें लेकिन जिनका यह कर्तव्य है वे ही जिम्मेदार कर्मचारी न केवल इन कर्तव्यों से विमुख होकर बातें कहें बल्कि इसी बात को लिखित अभिकथन के रूप में अपने वरिष्ठ अधिकारी को प्रस्तुत कर दे तो पूरा महकमा ही सन्देह के घेरे में दिखाई देने लगता है और ऐसा ही कुछ लिखा है सिंगोली के चर्चित राजस्व निरीक्षक सुरेश निर्वाण ने अपने द्वारा तहसीलदार सिंगोली के समक्ष प्रस्तुत किए गए प्रतिवेदन में जिसमें सबसे मजेदार तथ्य तो यह है कि तहसीलदार ने भी इसे स्वीकार कर लिया है जिससे पूरे राजस्व विभाग की कार्यशैली संदिग्ध हो गई है लेकिन अब सवाल इस बात को लेकर उठ रहे हैं कि ये लोग यदि अपने कर्तव्य पालन में असमर्थता जता रहे हैं तो मध्यप्रदेश शासन राजस्व विभाग से वेतन किस काम के लिए ले रहे हैं,राजस्व विभाग से सम्बंधित जमीनों का सीमांकन राजस्व महकमे के पटवारी,राजस्व निरीक्षक और तहसीलदार नहीं करेंगे तो कौन करेगा और पटवारी-आरई का महकमे में फिर क्या काम रह जाएगा ? इस बहुचर्चित मामले में मिली जानकारी के मुताबिक सिंगोली निवासी एक भू खाता धारक ने लोक सेवा केन्द्र के माध्यम से खसरा नकल,नक्शा ट्रेस चालान सहित प्रस्तुत आवेदन पत्र में पटवारी हल्का नम्बर 5 में स्थित भूमि सर्वे क्रमांक 70/3/1/मि 4 रकबा 0.024 का सीमांकन किए जाने का निवेदन किया गया था जिसमें न्यायालय तहसीलदार सिंगोली में प्रकरण दर्ज किया जाकर मूल आवेदन राजस्व निरीक्षक को भेजा गया था जिसके प्रत्युत्तर में राजस्व निरीक्षक द्वारा प्रतिवेदन ( प्रदर्श पी-1)प्रस्तुत कर बताया कि वर्णित सर्वे क्रमांक का रकबा 0.050 हैक्टेयर से कम है एवं भू-खण्ड की श्रेणी में आता है जिसका सीमांकन किया जाना सम्भव नहीं है,इसके अलावा अतिरिक्त सर्वे नम्बर पैकी में होकर पटवारी चालू नक्शा अभिलेख में बटांकन तरमीम नहीं होने से भी सीमांकन किया जाना सम्भव नहीं है अतएव सीमांकन किया जाना सम्भव नहीं होने से आवेदक का आवेदन पत्र निरस्त किए जाने का निवेदन किया गया है।इस तरह से राजस्व निरीक्षक के प्रतिवेदन के आधार पर प्राप्त मूल प्रकरण सिंगोली के तहसीलदार द्वारा निरस्त कर दिया गया जबकि यह भूमि भू-खण्ड न होकर खाता धारक की कृषि भूमि है जिसे राजस्व निरीक्षक ने बिना भू-व्यपवर्तन के भू-खण्ड कैसे बताया है ?यहाँ यह उल्लेखनीय है कि राजस्व अभिलेख में दर्ज भूमि के सम्बंध में विधिपूर्वक कार्यवाही सम्बन्धित जिम्मेदारों द्वारा नहीं किए जाने के पीछे अतिक्रमणकर्ताओं से एक मोटी रकम वसूल करने की चर्चा सामने आई है लेकिन सवाल इस बात को लेकर खड़े हो रहे हैं कि क्या अब सीमांकन कराने के लिए भी भू खाता धारकों को न्यायालय की शरण लेनी पड़ेगी तो फिर पटवारी और राजस्व निरीक्षक का इस महकमे में काम ही क्या बचा है।पीड़ित खाता धारक ने नीमच के संवेदनशील कलेक्टर मयंक अग्रवाल से न्याय की गुहार लगाते हुए दोषी राजस्व निरीक्षक के विरुद्ध विभागीय जाँच कर कार्यवाही करने की माँग की है।

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