"संविधान से डर किसे लगता है" विषय पर हुआ शैलेन्द्र शैली स्मृति व्याख्यान, जसविंदर सिंह ने रखे विचार

वौइस् ऑफ़ मप्र

नीमच।सीटू कार्यालय में आज जनवादी लेखक संघ के तत्वावधान में "संविधान से डर किसको लगता है" विषय पर शैलेन्द्र शैली स्मृति व्याख्यान आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता जनवादी लेखक संघ की अध्यक्ष प्रियंका कविश्वर ने की, जबकि विषय प्रवर्तन विजय बैरागी ने किया। संचालन सुनील शर्मा एवं आभार मुकेश नागदा ने व्यक्त किया।मुख्य वक्ता सुप्रसिद्ध लेखक और विचारक जसविंदर सिंह ने कहा कि भारत का संविधान केवल एक दस्तावेज नहीं, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम के संघर्षों की उपज है। उन्होंने कहा कि भारत में मुग़ल, पुर्तगाली, अरबी आए लेकिन बस गए, असली गुलामी 1757 से शुरू हुई जब ब्रिटिश सत्ता ने देश को लूटा। ब्रिटिश शासन ने भारतीय कृषि, उद्योग और आर्थिक ढांचे को पूरी तरह बर्बाद कर दिया।उन्होंने बताया कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से शुरू हुआ जनता का संघर्ष, अंततः 1947 की आजादी और 1950 में संविधान निर्माण तक पहुंचा। संविधान ने न केवल छुआछूत, भेदभाव, अंधविश्वास को खत्म करने की दिशा दी, बल्कि आम नागरिक को शिक्षा, चिकित्सा, भोजन, आवास जैसे मौलिक अधिकार भी दिए।जसविंदर सिंह ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना में स्पष्ट है कि “हम भारत के लोग” इसका निर्माण करते हैं, यह किसी एक पार्टी या संगठन का नहीं है। उन्होंने भाजपा और आरएसएस पर निशाना साधते हुए कहा कि ये संगठन मनुवाद की वापसी चाहते हैं और संविधान को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन देश की जनता जागरूक है और इन मंसूबों को सफल नहीं होने देगी।उन्होंने किसान आंदोलन और हाल ही में 9 जुलाई को हुई देशव्यापी हड़ताल को संविधान रक्षा की दिशा में मजबूत उदाहरण बताया जिसमें 25 करोड़ लोगों की भागीदारी हुई।अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रियंका कविश्वर ने कहा कि ऐसे व्याख्यानों से जनता में संविधान के प्रति जागरूकता और ऊर्जा बढ़ती है। उन्होंने इसे आगे और व्यापक रूप से फैलाने की बात कही। कार्यक्रम में कई प्रबुद्धजन और सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

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