नीमच। निर्माता-निर्देशक और लेखक रणदीप हुड्डा की ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर पर फिल्माई गई फ़िल्म हू किल्ड हिज स्टोरी’ टैगलाइन से सिनेमाघरों में पहुंची है। यह फिल्म भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में शामिल विनायक दामोदर सावरकर के जीवन और उनके सशस्त्र क्रांति की नीतियों का खुलासा करती है।जो 22 मार्च को रिजिल होने के बाद भी नीमच के सिनेमाघर में नहीं दिखाई जा रही है जिसको लेकर मंगलवार को 10 से 15 युवा उक्त फिल्म को देखने के लिए पटेल प्लाजा स्थित सिनेमा घर पहुंचे थे जहां फिल्म नहीं लगे होने के कारण उनके द्वारा जमकर विरोध प्रदर्शन किया गया और नारेबाजी करते हुए काले झंडे भी दिखाए गए,साथ ही थिएटर संचालक को तीन दिन का अल्टीमेटम भी दिया गया कि यदि वीर सावरकर की यह फिल्म थिएटर में नहीं लगाई गई तो थिएटर चलने नहीं दिया जाएगा वहीं युवाओं के विरोध के बाद थिएटर मैनेजर द्वारा बुधवार शाम तक वीर सावरकर पर आधारित फिल्म लगाने का आश्वासन दिया है जिसके बाद मामला शांत हुआ। युवक लोकेश चांगल ने जानकारी देते हुए बताया कि वीर सावरकर पर आधारित फिल्म 22 तारीख को रिलीज होनी थी परंतु जब हम आज 10 से 15 युवा उक्त फिल्म को देखने पटेल प्लाजा स्थित सिनेमाघर पहुंचे तो यहां फिल्म नहीं लगी हुई थी जिसका विरोध हमारे द्वारा किया गया है काले झंडे भी यहां दिखाए गए है और थिएटर संचालक को भी तीन दिन का अल्टीमेटम दिया गया है कि यदि तीसरे दिन फिल्म नहीं लगाई जाती है तो हम थिएटर नहीं चलने देंगे।इस फिल्म में वीर सावरकर के जीवन परिचय को दर्शाया गया है यदि यह फिल्म लगती है तो अधिक से अधिक युवा इस फिल्म को देखेंगे और वीर सावरकर के जीवन परिचय को जानेंगे।बतादे को निर्माता-निर्देशक और लेखक रणदीप हुड्डा की फिल्म ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर’ इतिहास के उन पन्नों को विस्तार से लिखने की कोशिश है,जो इसे बनाने वालों के मुताबिक एक योजना के तहत ‘मार’ दिए गए। ‘हू किल्ड हिज स्टोरी’ टैगलाइन से सिनेमाघरों में पहुंची ये फिल्म भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में शामिल विनायक दामोदर सावरकर के जीवन और उनके सशस्त्र क्रांति की नीतियों का खुलासा करती है। रणदीप हुड्डा ने ही फिल्म में सावरकर की भूमिका निभाई है। फिल्म बताती है कि भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के लिए सावरकर जिस सोच के साथ आगे बढ़ रहे थे और अपने संगठन को मजबूत कर रहे थे। अगर उसमें वह सफल होते तो देश को आजादी काफी पहले मिल गई होती,फिल्म ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर’ की कहानी प्लेग महामारी से शुरू होती है। सावरकर के पिता प्लेग महामारी से संक्रमित है। अंग्रेज पुलिस अधिकारी सावरकर के पिता सहित प्लेग महामारी से संक्रमित तमाम लोगों को जिंदा जला देते हैं। अंग्रेजी हुकूमत के प्रति सावरकर का बचपन से ही द्वेष है। बड़े होने के बाद देश की आजादी के लिए अभिनव भारत सीक्रेट सोसाइटी का गठन करते हैं और इस संगठन में देश के उन युवाओं को जोड़ते हैं जो भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराना चाहते हैं। वकालत की पढ़ाई के लिए वह लंदन जाते है और वहां से अपने संगठन को मजबूत करने की कोशिश करते और इसी वजह से उनको कालापानी की सजा हो जाती है। काला पानी से सजा काटकर आने के बाद उन्हें महात्मा गांधी की हत्या की साजिश में शामिल होने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया जाता।सावरकर के जीवन के अनसुने पहलुओं को दिखाने की कोशिश करती फिल्म ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर’ में जोर इस बात पर है कि वह गांधी की अहिंसा विचारधारा से बिल्कुल प्रभावित नहीं थे। वह गांधी की इज्जत करते हैं लेकिन उनकी विचारधारा का विरोध करते है। इस फिल्म में सुभाष चन्द्र बोस और सावरकर की विचारधारा के साथ यह भी बताया गया कि हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीतिक विचारधारा को विकसित करने का बहुत बड़ा बीड़ा वीर सावरकर को जाता है। फिल्म की कहानी रणदीप हुड्डा ने उत्कर्ष नैथानी के साथ मिलकर लिखी है। इस फिल्म को लेकर जिस तरह से हुड्डा ने शोध किया है उसका असर पूरी फिल्म में नजर आता है। करीब तीन घंटे की इस फिल्म के माध्यम से रणदीप हुड्डा ने सावरकर के जीवन के ऐसे पहलुओं पर प्रकाश डाला है, जिससे आम जनता पूरी तरह से अनजान है। उन्होंने इस फिल्म के माध्यम से यह भी सवाल उठाया है कि आखिर किसी कांग्रेसी नेता को कालापानी की सजा क्यों नहीं हुई ?।