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आरोग्य भारती मालवा प्रान्त की विचार गोष्टि सम्पन्न

नीमच। वनस्पतियों में शक्ति है परन्तु उनका  उपयोग कब व कैसे करना यह जानना जरुरी है यह बातें वक्ताओं ने आरोग्य भारती जिला नीमच द्वारा धनवंतरी पीठम,निपनिया में “ वनस्पति  जागरण का आरोग्य  व पर्यावरण पर प्रभाव “ विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में  कही | विचार गोष्ठी का प्रारम्भ अतिथियों द्वारा भगवान धन्वन्तरी के पूजन से हुआ| आरोग्य भारती की और से आदरणीय सुरेशानंदजी शास्त्री गुरूजी का अभिनन्दन आरोग्य भारती मालवा प्रान्त के अध्यक्ष विष्णुसेन कछावा और अशोक कुमुठ मंदसौर ने किया | मुख्य वक्त यतिन मेहता का स्वागत डॉ आशीष जोशी ने तथा विष्णु सेन कछावा का स्वागत आरोग्य भारती नीमच अध्यक्ष अजय भटनागर ने किया | गोष्ठी के विषय का परिचय देते हुए डॉ आशीष जोशी ने कहा कि जितना मैं समझ पाया हूँ वनस्पति जागरण एक अनुष्ठान है | हमारी पारम्परिक चिकित्सा पद्धतियों का संरक्षण आवश्यक है | आज समाज में परम्परिक चिकित्सा पद्धतियों से उपचार करने वाले लुप्तप्राय हो गए हैं | आरोग्य भारती के उद्देश्यों व कार्यों का परिचय विष्णु सेन कछावा ने दिया विचार गोष्ठी में अशोक कुमुठ ने कहा कि तन की बीमारी तो दवाओं से दूर की जा सकती है परन्तु मन की बीमारी का इलाज हमारे सकारात्मक विचार ही कर सकते है | हमारा आहार ही हमारी औषधि है | डॉ. एम पी अहिरवार ने कहा कि पंचभूत से निर्मित इस शरीर का संरक्षणआवश्यक है | केले में शक्ति व आरोग्य दोनों देने के गुण है यही स्थिति  दही और शहद की भी है उमरावसिंह गुर्जर ने कहा कि हम कैसे स्वस्थ रहें यह हमारी जिम्मेदारी है | कीटनाशकों के बढ़ते प्रयोग को  सीमित  करना जरुरी है | इनके प्रयोग से बिच्छू जैसे जहरीले जंतु तक समाप्त हो गए हैं | वैद्य प्रीति राठोड का कहना था कि औषधि में भी भावना होती है उसे जागृत कर उपयोग करने से लाभ होता है | ओमप्रकाश चौधरी ने कहा कि हमारे समाज में पारम्परिक चिकित्सा सम्बन्धी ज्ञान वर्षों पूर्व उनके जानकारों के साथ ही लुप्त हो गया क्योंकि उन्हें वे पात्र लोग नही मिले जिन्हें वे यह ज्ञान देकर जाते | गोष्ठी के मुख्य वक्ता  यतिन मेहता ने  अपने उदबोधन  में कहा कि हमें खेती में कीटनाशकों के बढ़ते प्रयोग  को रोकना चाहिए | इन कीटनाशकों ने हमारी कई दुर्लभ व उपयोगी  वनस्पतियों को समाप्त कर दिया है | खेती के लिए रासायनिक खाद आवश्यक है पर कीट नाशक नही | दूध , दही से विटामिन डी मिलता है पर समाज में इनका  प्रयोग न करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है जो घातक  है | अपने घर की छतों पर सब्जियां उगाइये जो आपके स्वास्थ्य के लिए उपयोगी  साबित होंगी | हर पौधा औषधि है , वनोषधि में प्राकृतिक तत्व विद्यमान हैं ,लेकिन वे अपने प्राकृतिक उद्गम स्थल पर पैदा होने पर ही गुणकारी होंगी | एक अनुभवी वैद्य के पास इनकी परख होती है | वनोषधियों में गुण उन्हें प्रकृति से लड़कर ही मिलते  हैं  | यदि आप खेत में उन्हें उगा रहे हैं तो उन्हें तनाव देकर ही गुणकारी वनस्पति पैदा की जा सकती है | धन्वन्तरी पीठम के अधिपति आदरणीय सुरेशानंदजी शास्त्री गुरूजी ने कहा कि आयुर्वेद के प्रति  जाग्रति आज भी  शून्य है | हम उसे आत्मसात नही कर रहे हैं | वनस्पतियों में शक्ति है , पर उनके उपयोग का ज्ञान आवश्यक है | हमारे देश में हर 100 किलोमीटर पर आयुर्वेद की परिभाषा बदल जाती है | 200 किलोमीटर पर योग  बदल जाता है और 500 किलोमीटर पर पूरा आयुर्वेद बदल जाता है | हमारे उत्सवों में उपयोग की जाने वाली वनस्पतियों और सामग्री के उपयोग का महत्व है | गणेश उत्सव में गणेश को अर्पित दुर्वा का रस पिने से शीतलता आती है | नवरात्रि के वातावरण में उत्पन्न जवारों के रस के सेवन से नाभि दोष समाप्त होते हैं | इसी प्रकार  चेत्र मास में 9 दिन नीम की पत्तियों का रस पीने से , वैशाख में 4 दिन पीपल के कोपल पत्ते चबाने से , ज्येष्ठ माह में शीशम के पत्ते 9 दिन चबाने से आरोग्य प्राप्त होता है | इसी प्रकार श्रावण में काले पत्थर से बने शिव लिंग पर चढ़े  बिल्व पत्र  , खाखरे के फूल और गूलर के फल से बनी चटनी स्वास्थ्य वर्धक है | आज युवा व तनाव पर्यायवाची हो गए हैं | विद्यार्थी डिप्रेशन में जा रहे हैं | उन्होंने जीवन के लिए आवश्यक पोषक तत्व लेने ही बंद कर दिए हैं | हमारी रसोई के मसालों का सही उपयोग हमें उत्तम स्वास्थ्य दे सकता है | आज कृषक अपने लिए नही केवल आर्थिक लाभ के लिए फसलें उगाते हैं जो सही नही है | जीवन में आयुर्वेद और अध्यात्म दोनों आवश्यक हैं | नारद पुराण में कहा गया है वनस्पति तू हमें आरोग्य व उत्तम स्वास्थ्य का वर दे | गोष्ठी के समापन पर आभार अजय भटनागर ने व्यक्त किया व संचालन ओमप्रकाश चौधरी ने किया | विचार गोष्ठी में अजय जिंदल , बाबूलाल गौड़ , लक्ष्मी प्रेमी प्रेमानी, सुधा महावर , महेश बैरागी , नेपालसिंह सहित बड़ी संख्या में ग्राम वासी और जिज्ञासु श्रोता उपस्थित थे |

 

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