नीमच। भारत विभाजन ने जो रक्त की लकीर खींची थी वह हमारे मन में आज भी है। यह बात जयपुर से पधारे ख्यात लेखक, चिंतक इंदुशेखर तत्पुरुष ने कृति संस्था द्वारा आयोजित विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में कही | उन्होंने बांग्लादेश का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत का यह विभाजन विचित्र था जिसमें एक व्यक्ति का जन्म एक देश में हुआ ,जिसका नाम भारत था | जब वह नौकरी करने लगा तो उसके देश का नाम पाकिस्तान हो गया और जब वह सेवानिवृत्त हुआ तब वह बंगलादेश में था | जबकि न उसने अपना घर बदला ,न गाँव | हमने सेंकडों राज्य और उनकी सीमाएं देखी हैं जिनकी सीमा पर कोई सेना नही होती थी | सेना केवल युद्ध काल में ही सीमाओं पर दिखाई देती थी | लेकिन इस विभाजन ने हर देश की सीमा पर सेनाएं तैनात कर दी | विभाजन प्रकृति का नियम है लेकिन विभाजन हमेशा मानवीय विस्तार के लिए होता है विनाश के लिए नही | लेकिन इस विभाजन ने विनाश को आमंत्रित किया | यह विभाजन यदि सही होता तो आज पाकिस्तान जल नही रहा होता और बंगला देश में अफरातफरी नही मची होती | 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना होती है , 1930 इसके इलाहाबाद अधिवेशन में अल्लामा इक़बाल ने भारत विभाजन के बीज बोये पाकिस्तान की अवधारणा देकर | 1942 में केम्ब्रिज के विद्यार्थी रहमत अली ने पाकिस्तान की परिकल्पना को आकार दिया परन्तु तब उसका नाम पाक्स्तान था | 1946 में जिन्ना ने पाकिस्तान को साकर करने की बात उठाई ।आश्चर्य जनक है कि जिन्ना और इकबाल दोनों के ही पूर्वज दो पीढ़ी पहले हिन्दू थे | जो जिन्ना पहले राष्ट्रवादी थे और इकबाल जिन्होंने सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा गीत लिखा वे कुछ ही समय में विभाजन समर्थक हो गए| गांधीजी विभाजन के विरोधी थे लेकिन वे उसे रोक नही पाए | गांधी विभाजन रोकने के लिए जिन्ना को प्रधानमंत्री तक बनाने को तैयार थे| नेहरु और पटेल ने उनसे बिना पूछे भारत विभाजन को मंजूरी दे दी | शायद इसीलिए गांधीजी स्वतन्त्रता के समारोह में शामिल नही हुए और सेंकडो मील दूर नौआखली चले गए | 1960 में नेहरु ने एक साक्षात्कार में माना कि हम बूढ़े हो चले थे और हममे और आन्दोलन करने की हिम्मत नही थी | इसलिए हमने विभाजन को स्वीकार कर लिया | एक और हिंदूवादी नेता सावरकर ने भी द्विराष्ट्रवाद के लिए सिद्धांतत: अपनी सहमती दी थी।अब प्रश्न यह है कि इस विभाजन के इतिहास को याद क्यों रखा जाए ? देश के नागरिक को यह क्यों जानना है कि यह विभाजन विभीषिका क्यों था ? क्योंकि इस विभाजन में हमे घावों और दूरियों के सिवा कुछ नही दिया | बँगला देश में आज जो कुछ भी हो रहा है वह इसी विभाजन की विभीषिका का परिणाम है | देश कभी उपासना पद्धति के आधार पर विभाजित नही होते वे प्राकृतिक आधार पर विभाजित होते हैं | इसलिए यह विभाजन केवल तात्कालिक हल था और इसीलिए यह विभाजन असफल सिद्ध हो रहा है |हिन्दू मानसिकता और समाज सबको साथ लेकर चलने में विश्वास रखता है उसने कभी भी अलगाव को स्वीकार नही किया | यदि हमें इस विभाजन की मानसिकता से लड़ना और इसे रोकना है तो देश के हिन्दू समाज को संगठित होना होगा | हिंदुत्व के विचार को अध्यात्म के स्तर पर स्वीकार कर जाति व वर्ग के विचारों से ऊपर उठकर ही हम विभाजन की इस प्रवृत्ति को रोक सकते हैं | यदि देश के बहुसंख्यक संगठित हो गये तो कोई भी विभाजनकारी मानसकिता उन्हें परास्त नही कर सकती | इसी संगठन के लिए इस विभाजन की विभीषिका को याद रखना आवश्यक है |कार्यक्रम का प्रारम्भ सरस्वती माता के पूजन अर्चन से हुआ हुआ और मुख्य वक्ता इंदुशेखर जी तत्पुरुष का स्वागत संस्था अध्यक्ष ,बाबूलाल गौड़ ,उपाध्यक्ष कमलेश जैसवाल , सचिव महेंद्र त्रिवेदी ,कोषाध्यक्ष राजेश जायसवाल मनोहरसिंह लोढ़ा ने किया | अपने स्वागत भाषण में कार्यक्रम की प्रस्तावना रखते हुए अध्यक्ष बाबूलाल गौड़ ने कहा कि विभाजन के बाद यह आजादी नही थी बल्कि इसमें ब्रिटिश सत्ता द्वारा केवल सत्ता का हस्तान्तरण भारत में कांग्रेस को और पाकिस्तान में मुस्लिम लीग को किया गया | यदि प्रजा को संविधान देने के लिए 3-4 साल लिए गये तो विभाजन केवल 1 या 2 माह में ही क्यों स्वीकार कर लिया गया ? इस पर भी गहन विचार किया जा सकता था ? कार्यक्रम संयोजक ओमप्रकाश चौधरी ने कहा कि विभाजन पर कई पुस्तकें लिखी गई हैं फिर भी सरदार खुशवंतसिंह की पुस्तक ए ट्रेन तो पाकिस्तान (हिंदी में पाकिस्तान मेल ) और राही मासूम रजा के उपन्यास आधा गाँव को पढ़कर विभाजन की विभीषिका की भयावहता को समझा जा सकता है | कार्यक्रम का संचालन ओमप्रकाश चौधरी ने किया व आभार सचिव महेंद्र त्रिवेदी ने व्यक्त किया | कार्यक्रम में कृति के सदस्य किशोर जेवरिया , प्रकाश भट्ट ,सत्येन्द्र सक्सेना ,सत्येन्द्र ,राठोड ,अक्षय पुरोहित ,जगदीश लोगड ,श्रीमती आशा सांभर,भरत जाजू ,शैलेन्द्र पोरवाल,गणेश खंडेलवाल ,जीवन कौशिक ,नरेन्द्र पोरवाल ,शरद पाटीदार , प्रवीण शर्मा ,कृष्णकुमार शर्मा ,रघुनंदन पराशर , गोपाल पोरवाल , कैलाश बाहेती ,अजय भटनागर ,डॉ.आशीष जोशी ,डॉ.राजेन्द्र ऐरन , हरीश मंगल ,डॉ. सुरेन्द्रसिंह शक्तावत , राजमल व्यास ,गोवर्धनलाल धनोतिया , पवन कुमार दुबे, डॉ.श्रीमती बीना चौधरी , सुनील सिंहल , दिनेश मनावत ,सहित बड़ी संख्या में सुधि श्रोता उपस्थित थे |