नीमच।महेन्द्र उपध्य्याय।शहर में मंगलवार को 30 से 40 छोटे बड़े ताजियों का जुलूस पैगम्बर मोहम्मद सा.के नवासे हजरत इमाम हुसैन की याद में सुबह 8 बजे से पटेल चाल,फ्रूट मंडी,टैगोर मार्ग,पुस्तक बाजार,जाजू बिल्डिंग,नया बाजार घंटाघर होते हुए अपने-अपने मुकाम पर पहुंचें तथा शाम को 5 बजे मुकाम से उठकर टैगोर मार्ग से रात को सभी करबला के लिए रवाना होंगे।वहां उनको ठंडा किया जाएगा।मोहर्रम के अवसर पर शहर के प्रमुख मार्गों पर देर रात तक चहल पहल रही। मुख्य मार्ग और चौराहों पर छबील भी.सजाई गई, जहां पानी, शबर्त आदि रखे गए थे। बच्चों के खिलौने से लेकर खाने पीने की वस्तुओं की दुकानें भी सजी थी, ऐसे में बाजार में मेले सा नजारा नजर आ रहा था। वहीं छबीलों पर इमाम हुसैन की शहादत के गीत गूंज रहे थे।मुहर्रम गम और मातम का महीना है, जिसे इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग मनाते हैं। इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, मुहर्रम इस्लाम धर्म का पहला महीना होता है। यानी मुहर्रम इस्लाम के नए साल या हिजरी सन् का शुरुआती महीना है। मुहर्रम बकरीद पर्व के 20 दिनों के बाद मनाया जाता है। इस बार मुहर्रम का महीना 31 जुलाई से शुरू हुआ था ऐसे में 8 ओर 9 अगस्त को आशूरा ओर मुहर्रम मनाया गया।इस्लाम धर्म के लोगों के लिए यह महीना बहुत अहम होता है, क्योंकि इसी महीने में हजरत इमाम हुसैन की शहादत हुई थी। हजरत इमाम हुसैन इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब के छोटे नवासे थे। उनकी शहादत की याद में मुहर्रम के महीने के दसवें दिन को लोग मातम के तौर पर मनाते हैं,जिसे आशूरा भी कहा जाता है इस्लाम धर्म की मान्यता के मुताबिक, हजरत इमाम हुसैन अपने 72 साथियों के साथ मोहर्रम माह के 10वें दिन कर्बला के मैदान में शहीद हो गए थे। उनकी शहादत और कुर्बानी के तौर पर इस दिन को याद किया जाता है।इंसानियत को बचाने के लिए यजीद के खिलाफ इमाम हुसैन ने कर्बला की जंग लड़ी और शहीद हो गए। मुहर्रम के 10वें दिन यानी आशूरा के दिन ताजियादारी की जाती है।इमाम हुसैन की इराक में दरगाह है,जिसकी हुबहू नकल कर ताजिया बनाया जाता है। शिया उलेमा के मुताबिक, मोहर्रम का चांद निकलने की पहली तारीख को ताजिया रखी जाती है। इस दिन लोग इमाम हुसैन की शहादत की याद में ताजिया और जलसा निकालते हैं।