logo

(नवरात्रि दूसरा दिन -माता ब्रह्मचारिणी)


लोक आस्था की चमत्कारी देवी है जोगणियाँ माता

    
कोटा-चित्तौड़गढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित पर्यटन स्थल मेनाल से लगभग 9 किमी दूर पहाड़ी और सौंदर्य के बीच पुराना और अद्भूत जोगणियाँ माता का मंदिर है।चित्तौड़गढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 85 किलोमीटर दूर राजस्थान और मध्यप्रदेश की सीमा से लगे उपरमाल पठार के दक्षिणी छोर पर जोगणियाँ माता का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है।मान्यता है कि यहाँ आने पर लकवाग्रस्त रोगी स्वस्थ होकर जाते हैं।इतिहास के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 8 वीं शताब्दी के लगभग हुआ था।लोकमान्यता है कि पहले यहाँ अन्नूपर्णादेवी का मंदिर था जिसके बाद अन्नपूर्णा के बजाय जोगणियाँ माता के नाम से यह शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध हुआ।मंदिर परिसर में लटकी हुई हथकड़ियों के बारे में कहा जाता है कि चोर और डाकू वारदात को अंजाम देने से पहले माता का आशीर्वाद लिया करते थे जिनके पुलिस के हत्थे चढ़ने के बाद मौके से फरार होते हुए माँ के दरबार पहुँचते थे जहाँ उनके हाथों में लगी बेड़ियां स्वतः ही खुल जाया करती थी।जोगणियाँ माता लोक आस्था की देवी हैं जिन्हें एक चमत्कारी देवी के रूप में जाना जाता है।इस देवी मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो शेरों की सजीव आकृतियां बनी हैं एवं मंदिर के गर्भगृह में महाकाली,महालक्ष्मी और सरस्वती की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठापित है।मंदिर परिसर में दो शिव मंदिर बने हुए हैं जहाँ वर्षपर्यंत गोमुख से रिस-रिसकर बहती जलधारा पर्वतमाला और सुरम्य वन्य क्षेत्र से आवृत इस मंदिर में नैसर्गिक सौंदर्य में अतिशय वृद्धि कर देते है।माता की कृपा से मनोवांछित फल पाने हेतु श्रद्धालु बड़ी संख्या में देवी के इस मंदिर में आते हैं।वैसे तो वर्ष पर्यंत ही यहाँ श्रद्धालुओं की आवाजाही रहती है लेकिन नवरात्रा के दिनों में यहाँ मेले जैसा माहौल रहता है जहाँ नौ दिनों तक हजारों श्रद्धालु माता के दर्शन कर मन की मुराद माँगते हैं और माता जोगणियाँ भी अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती है।बताया जाता है कि आज से लगभग चार दशक पहले बलिप्रथा प्रचलित थी लेकिन धीरे धीरे सामाजिक जनजागृति के चलते बलिप्रथा बन्द हो गई इसमें भी जैन सन्त यशकुँवर जी मा. सा. की प्रेरणा का स्मरण किया जाता है जिससे अब यहाँ बलिप्रथा पूर्णतः बन्द हैं।चित्तौड़गढ़ जिले के शक्तिपीठों में से एक जोगणियाँ माता के चमत्कार के चलते श्रद्धालुओं की अगाढ श्रद्धा का केंद्र होने के साथ ही पहाड़ के ऊपर और प्रकृति की गोद में बसा यह मंदिर दार्शनिक और पर्यटक स्थल के रूप में भी  जाना जाता है।मध्यप्रदेश के सिंगोली सहित राजस्थान के बेगूँ, चित्तौड़गढ़,भीलवाड़ा होकर यहाँ पहुँचा जा सकता है।
(संकलनकर्ता - शंकरगिर रजनाती)

Top