दर्शन मात्र से ही सारी पीड़ाएँ दूर कर देती है झाँतलामाता
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिला मुख्यालय से 9 किमी दूर माताजी की पाण्डोली स्थित श्री झाँतला माताजी एक प्रमुख शक्तिपीठ है।यहाँ आने वाले हर श्रद्धालु की मनोकामनाएँ पूरी होती है।यहाँ विशेषकर लकवाग्रस्त लोगों को लाया जाता है।ऐसी मान्यता है की माँ के आशीर्वाद से लकवाग्रस्त रोगी भले चंगे होकर घर लौटते हैं।जो रोगी के रूप में सोते या बैठे हुए आते हैं वे हँसते हुए वापस जाते हैं।इस मूर्ति को चमत्कारिक माना जाता है जिनके दर्शन मात्र से ही सारी पीड़ाएँ दूर हो जाती है और मन को सुकून मिलता है।बताते हैं कि श्री झाँतला माता की मूर्ति यहाँ महाभारत काल से ही है।इस शक्तिपीठ पर हर साल लाखों श्रद्धालु अपनी-अपनी मन्नत लेकर आते हैं।यहाँ हर साल दोनों नवरात्रा में नौ ही दिन मेले का आयोजन किया जाता है।वास्तव में माँ की महिमा का जितना गुणगान किया जाए उतना ही कम है।अधिकांश लोगों की मान्यता है कि लकवा रोगियों को मन्दिर परिसर में रात्रि विश्राम कराने के साथ ही समीपस्थ वटवृक्ष की परिक्रमा कराने से निश्चय ही लाभ होता है।इसी विश्वास और भावना के अनुरूप बड़ी संख्या में लकवा रोगी और उनके परिजन इस नवरात्रि में भी झाँतला महारानी की शरण में रहते हैं।कई श्रद्धालु रोग मुक्ति के बाद मुर्गें का उतारा कर मन्दिर परिसर में उसे छोड़ देते हैं वहीं कई भक्त यहाँ महाप्रसादी का आयोजन करते हैं।रोगियों के अलावा बड़ी संख्या में अन्य श्रद्धालु भी झाँतला माता के दर्शन के लिए हजारों की संख्या में नवरात्रि के दिनों में पहुँचते हैं जिसके फलस्वरूप यहाँ नवरात्रि मेले की भी अनुभुति होती रही।आज के इस आधुनिक और वैज्ञानिक युग में जहाँ चिकित्सक लकवा रोगियों का उपचार करने में महीनों लगा देते हैं वहीं झाँतला माता के दर्शन मात्र से लकवे का रोग दूर हो जाना एक चमत्कार ही कहा जा सकता है।मातारानी का यह मन्दिर चित्तौड़गढ़-उदयपुर(व्हाया-मावली-फतेहपुर)कपासन सड़क मार्ग पर पाण्डोली गाँव में स्थित होने के कारण यहाँ विराजमान माँ को पाण्डोली की माताजी भी कहा जाता है।(संकलनकर्ता-शंकरगिर रजनाती)