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(नवरात्रि पाँचवां दिन-स्कंदमाता)


पँच रूप में विराजमान हैं दूधाखेड़ी माताजी

    

मध्यप्रदेश में मालवा के मंदसौर जिले में भानपुरा तहसील से 12 किलोमीटर दूर भानपुरा गरोठ मार्ग पर जगतजननी केसरबाई महारानी दूधाखेड़ी माताजी का करीब 700 साल पुराना आस्था और विश्वास का बड़ा मंदिर है।इस चमत्कारी मंदिर में दूधाखेड़ी माताजी अपने पँच रूप में विराजमान है जहाँ हजारों की संख्या में खास तौर से लकवाग्रस्त व अन्य शारीरिक व्याधियों से ग्रस्त मरीज कुछ ही दिनों में स्वस्थ होकर माता के गुणगान करते हुए जाते हैं।रावत मीणा भाट की पोथी के अनुसार माता के परम भक्त मोडी गांव निवासी दूधाजी रावत को माता ने स्वप्न में आकर कहा था कि आने वाले समय में परिवर्तन के कारण मैं अपना स्थान परिवर्तन करना चाहती हूँ।आज जिस जगह माता का मंदिर है वहाँ प्राचीन समय में घना जंगल हुआ करता था और यहाँ एक व्यक्ति पेड़ काट रहा था उसी समय माता अपने देवी रूप में आई और कहा कि हरे पेड़ों को काटना लाखों लोगों को मारने के समान महापाप है।व्यक्ति ने पेड़ काटना बंद कर दिया और लौटने लगा।उस व्यक्ति को पश्चिमी क्षेत्र से वृद्धा आती हुई दिखाई दी और उनके अंतर्ध्यान होते ही वहाँ वन से दूध की धारा बहने लगी।दूध की धारा देखने के लिए आसपास के क्षेत्रों से लोगों का जमावड़ा होने लगा।दूधाजी रावत ने इस स्थान पर आकर देखा तथा यहाँ माता की मूर्ति व मंदिर की स्थापना की।जिस जगह दूध की धारा बह रही थी आज वहाँ माँ की प्रतिमा स्थापित है और कुंड बना हुआ है तथा इस लोकदेवी को दूधाखेड़ी माताजी के नाम से प्रसिद्धि मिली।दूधाजी रावत ने आजन्म देवी की पूजा अर्चना की,बाद में गोसाईयों को यहां की पूजा का भार सौंपा।गोसाइयों से तेलियाखेड़ी में बसने वाले नाथों ने पूजा भार ले लिया।वर्तमान में तेलियाखेड़ी गांव का नाम दूधाखेड़ी गांव हो गया।श्रद्धालुओं के लिए आशीर्वाद स्वरुप दूधाखेड़ी माताजी की प्रतिमा के सम्मुख प्राचीनकाल से एक दिव्य ज्योति प्रज्वलित है।सुबह व शाम के समय माँ की विशेष आरती व श्रंगार होता है,उस समय बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।इंदौर की महारानी अहिल्याबाई अपने विश्वासपात्र एवं वीरअंगरक्षिका जो सोंधिया राजपूत समाज से थी उनके साथ यहाँ दर्शन के लिए आई थी तथा यहाँ एक धर्मशाला का निर्माण कराया था।महारानी अहिल्याबाई ने मूर्ति के पास 4 खम्भे लगवाकर छाया भी करवाई थी।इसके बाद यशवंतराव होलकर,शिवाजीराव होलकर व तुकोजीराव होलकर,झालावाड़ दरबार जालिमसिंह तथा ग्वालियर नरेश सिंधिया राजवंश ने भी यहाँ धर्मशाला निर्माण करवाया।सीतामऊ के राजा ने अपने राज्य में मंदिर के पुजारियों को खेती हेतु जमीन जागीर में दी थी।कई राजा महाराजाओं की आराध्यदेवी रही है दूधाखेड़ी माताजी।लोकमान्यता के अनुसार पौराणिक नरेश मोरध्वज तथा कोटा दरबार झाला जालिमसिंह की आराध्य देवी रही है दूधाखेड़ी माताजी।

(संकलनकर्ता-शंकरगिर रजनाती)

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