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एसबीआई बैंक की सिंगोली शाखा पर आमजन को गुमराह करने का आरोप 


सिंगोली (निखिल रजनाती)। एसबीआई बैंक की सिंगोली शाखा पर आमजन को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए कार्यशैली पर सवाल खड़े कर आरटीआई एक्टिविस्ट शूभम चतुर्वेदी ने बताया कि सिंगोली तहसील मुख्यालय होने के साथ ही नगर परिषद क्षेत्र होने के साथ ही यहाँ नेशनल बैंक के मामले में एकमात्र बैंक के ऊपर निर्भरता है और इसी बैंक के कैशियर और कर्मचारी द्वारा नित नए नए नियम जनता को बताए जाते हैं और उन नियमों का यह हवाला दिया जाता है कि यह सारे नियम ऊपर से आए हैं जबकि ऊपर से आने वाले नियम कहीं पर भी चस्पा नहीं होते हैं।जब बैंक के कस्टमर उन नियमों को जानने का प्रयास करता है या नियमों के प्रति अनभिज्ञता दिखाता है तो उसे बस इतना इतना सा जवाब मिलता हैं कि यह नियम ऊपर से आए हैं।आरटीआई एक्टिविस्ट ने बताया कि कभी बैंक कैशियर द्वारा कहा जाता है कि फाइनेस कम्पनियों के अकाउंट में 2 लाख से ज्यादा की राशि जमा नहीं कि जा सकती तो कभी आमजन को कहा जाता हैं कि 10000 रुपये से कम का लेनदेन अंदर नहीं होगा तो कभी कहा जाता है कि ऊपर से आदेश आया हुआ है आप केस डिपॉजिट मशीन का ही उपयोग करें ब्रांच में जमा नहीं होगा और जब कैश डिपॉजिट मशीन नरम नोट नहीं लेती है तब वह केश राशि आप बैंक की शाखा के अंदर जमा करा सकते हो अब यहां पर बैंक के कस्टमर को दो-दो बार लाइन में लगना पड़ रहा है पहले डिपॉजिट करने के लिए कैश डिपॉजिट मशीन की लाइन दूसरी ब्रांच के अंदर शाखा की लाइन।चतुर्वेदी ने बताया कि असल समस्या यह है कि क्षेत्र की अधिकांश जनता अशिक्षित और ग्रामीण है जिनको इस वित्तीय लेनदेन से बड़ी तकलीफ हो रही है इस ओर न प्रशासन का ध्यान है न बैंक की मैनेजमेंट का जरा सोचिए आदिवासी अंचल से आने वाले उन ग्रामीणों के बारे में जो बैंक आकर ठगा सा महसूस करते हैं।बैंक को चाहिए था कि डिजिटल को बढ़ावा देने के साथ वैकल्पिक व्यवस्था भी चलती रहे क्योंकि ग्राहकों से बैंक हैं,बैंक से ग्राहक नहीं।आरटीआई एक्टीविस्ट शूभम चतुर्वेदी ने कहा कि डिजिटल क्रांति को बढ़ावा देना अच्छी बात हैं पर बैंक की तैयारियां भी उसी अनुरूप होना चाहिये।बैंक में एक मशीन हैं जो कभी भी दम तोड़ देती हैं तो कभी बैंक कर्मचारियों की बाते बैंक ग्राहकों को मानसिक पीड़ा बन रही है।

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