सिंगोली(निखिल रजनाती)।श्रीरामचरितमानस स्वाध्याय से मनुष्य सभी सांसारिक दुखों से मुक्त हो जाता है।रामकथा और श्रीराम का जीवन अनुकरणीय है,श्रीराम उच्चतम प्रतिमान और वैदिक हिंदू धर्म संस्कृत के प्राण हैं। श्रीराम परम धर्म है,भगवान प्रभु श्रीराम के पावन चरित्र में समस्त उच्चताएं,दिव्यताऐं एवं श्रेष्ठताएं समाहित हैं।श्रीराम को अपने अंतःकरण में उतारने से जीवन धन्य हो जाएगा।यह उपदेश संत नन्दकिशोरदास जी महाराज ने श्री राम कथा में दिए।वे सिंगोली तहसील के कदवासा चौराहा छतरिया के बालाजी में श्रीराम कथा के पांचवें दिन बड़ी संख्या में श्रीराम भक्तों को कथा सम्बोधित कर रहे थे।उन्होंने श्रीराम विवाह महोत्सव की कथा का रसपान कराया।भगवान श्रीराम के विवाह का भव्य और सुंदर वर्णन करते हुए बताया कि श्रीराम के आदर्शो के साथ सभी लोग सीता माँ के व्यक्तित्व से सीख लेने की जरूरत है।महाराज ने बताया कि राजा जनक के दरबार में भगवान शिव का धनुष रखा था उनके विशालकाय धनुष को कोई उठाने की क्षमता नहीं रखता था और राजा जनक ने प्रतिज्ञा कर ली कि जो इस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ायेगा उसी से सीता का विवाह होगा।स्वयंवर की निर्धारित तिथि पर सभी देश के राजाओं औऱ महाराजाओं को आमंत्रित किया लेकिन सफलता नहीं मिली।इस दौरान राजा जनक के दरबार में जब श्रीराम और लक्ष्मण दोनों भाई पहुँचे तो मिथिलावासी आश्चर्यचकित हो गए।सीता की सखियाँ तरह तरह की बातें कर रही थी क्योंकि सीता के विवाह के लिये धनुष तोड़ने की शर्त रखी थी।बड़े बड़े योद्धाओं से धनुष तोड़ना तो दूर बल्कि वह हिला भी नहीं सके थे तब गुरु से आज्ञा व आशीर्वाद लेकर जब भगवान श्रीरामचन्द्र जी धनुष के पास गए तो धनुष आसानी से उठ गया धरती माता खुद नीचे हो गयी और भगवान श्रीराम ने बड़ी ही आसानी से एक ही झटके में धनुष को तोड़ दिया।धनुष टूटते ही सीता सहित समस्त मिथिलावासी प्रफुल्लित हो उठे।हर तरफ जय श्रीराम के जयघोष की गूंज सुनाई पड़ी। कथा पंडाल में उपस्थित श्रोता भी खुशियों से झूम उठे।इसके बाद श्रीराम और सीता का विवाह संपन्न हुआ।भगवान श्रीराम और सीताजी के विवाह के दौरान उपस्थित महिला पुरुषों ने कन्यादान किया।