सिंगोली (निखिल रजनाती) ।धरती पर धर्म की रक्षा और मर्यादा की स्थापना के लिये ही प्रभु श्रीराम का अवतार हुआ भगवान श्रीराम का जन्म रावण वध करने के उद्देश्य से सृष्टि से पाप का भार मिटाने के लिये ही हुआ।श्रीराम कथा का मुख्य उद्देश्य जनसाधारण के मानस पटल पर श्री रामज्योति प्रज्वल्लित करना है।श्रीराम के चरित्र का अनुकरण कर बालकों को दृढ़ चरित्रवान बनाना है।यह उपदेश संत नन्दकिशोरदासजी महाराज ने सिंगोली तहसील के कदवासा चौराहा स्थित छतरिया बालाजी मैदान में श्रीराम कथा के छठवें दिन श्रीराम केवट संवाद एवं राम वनवास भ्रमण की घटनाओं का सुंदर झाँकियों के साथ चित्रण करते हुए कहे।महाराज ने बताया कि मंथरा दासी के कहने पर माता कैकेयी ने महाराज दशरथ से अपने दो वरदान मांगे जिन्हें सुनकर महाराज दशरथ व्याकुल हो गए और महाराज दशरथ कैकेयी से अपना वरदान बदलने को कहते रहे परन्तु कैकेयी कुछ भी सुनने को तैयार नहीं,राजा दशरथ पूरी रात राम राम करते रहे और रोते रहे और सुबह अयोध्यावासी महाराज के दर्शन करने महल जाते हैं तब राम पिता दशरथ की दशा देखते है तो भगवान श्रीराम भी रो पड़ते है और माता कैकेयी से कहते है कि वह बेटा भाग्यशाली होता है जो माता पिता की आज्ञा का पालन करता है।वनवास के दौरान केवट राम-लक्ष्मण और सीता माता को गंगा पार लेकर गए केवट को निर्मल भक्ति का वरदान देकर प्रभु श्रीराम ने गंगा किनारे पहुंचकर गंगा मैया की पूजा अर्चना की। तुलसीदासजी ने भगवान श्रीराम और केवट के वर्णन को विस्तारपूर्वक सुनाते हुए बताया कि श्रीराम ने केवट से नाव मांगी पर वो नहीं लाए।वह कहने लगे मैंने आपका भेद जान लिया,आपके चरण कमलों की धूल के लिए सब लोग कहते हैं कि वह मनुष्य बना देने वाली कोई जड़ी बूटी है जिसके छूते ही पत्थर की शिला सुंदरी स्त्री हो गई और मेरी नाव तो काठ की है।हे नाथ! मैं चरण कमल धोकर आप लोगों को नाव पर चढ़ा लूँगा,मैं आपसे कुछ उतराई नहीं चाहता।हे राम!मुझे आपकी दुहाई और दशरथजी की सौगंध है,मैं सब सच-सच कहता हूँ,लक्ष्मण भले ही मुझे तीर मारें, पर जब तक मैं पैरों को पखार न लूँगा तब तक हे कृपालु!मैं पार नहीं उतारूँगा।केवट के प्रेम में लपेटे हुए वचन सुनकर करुणाधाम श्रीरामचन्द्रजी जानकीजी और लक्ष्मणजी की ओर देखकर हँसे।कृपा के समुद्र श्री रामचन्द्रजी केवट से मुस्कुराकर बोले भाई! तू वही कर जिससे तेरी नाव न जाए,जल्दी जल लाओ और चरण धोलो। केवट श्री रामचन्द्रजी की आज्ञा पाकर कठौते में भरकर जल ले आए और अत्यन्त आनंद और प्रेम में उमंगकर वह भगवान के चरणकमल धोने लगे।गुहराज निषाद ने पहले प्रभु श्रीराम के चरण धोए और फिर उन्होंने अपनी नाव में उन्हें सीता, लक्ष्मण सहित बैठाया,चरणों को धोकर और सारे परिवार सहित स्वयं उस जल चरणोदक को पीकर पहले उस महान पुण्य के द्वारा अपने पितरों को भवसागर से पार कर फिर आनंदपूर्वक प्रभु श्री रामचन्द्रजी को गंगाजी के पार ले गए।निषादराज और लक्ष्मणजी सहित श्री सीताजी और श्री रामचन्द्रजी नाव से उतरकर गंगाजी की रेत बालू में खड़े हो गए तब केवट ने उतरकर दण्डवत की।उसको दण्डवत करते देखकर प्रभु को संकोच हुआ कि इसको कुछ दिया नहीं,पति के हृदय को जानने वाली सीताजी ने आनंद भरे मन से अपनी रत्न जड़ित अँगूठी अँगुली से उतारकर कृपालु श्री रामचन्द्रजी ने केवट से कहा नाव की उतराई लो।केवट ने व्याकुल होकर चरण पकड़ लिए। श्रीराम कथा में बड़ी संख्या में श्रद्धालु कथा का धर्म लाभ ले रहे हैं।