सिंगोली (निखिल रजनाती)। भारतीय धर्म संस्कृति में भगवान राम आदर्श व्यक्तित्व के प्रतीक हैं।श्रीराम के आदर्श लक्ष्मण रेखा उस मर्यादा के समान है जो लांघी तो अनर्थ ही अनर्थ और सीमा की मर्यादा में रहे तो खुशहाल और सुरक्षित जीवन।परिदृश्य अतीत का हो या वर्तमान का,जनमानस ने रामजी के आदर्शों को खूब समझा-परखा है और इसी वजह से भगवान श्रीराम की प्रासंगिकता को आज भी माना है।रामजी का पूरा जीवन आदर्शों,संघर्षों से भरा पड़ा है उसे अगर सामान्यजन अपना ले तो उसका जीवन स्वर्ग बन जाए।मानवता के उद्धार के लिए ही भगवान श्रीराम वन गए थे।यह उपदेश संत श्री नन्दकिशोरदास जी महाराज ने सिंगोली तहसील के कदवासा चौराहा समीप छतरिया बालाजी में नौ दिवसीय संगीतमय श्रीराम कथा के आठवें दिन श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए कहे।इस अवसर पर चित्रकूट आश्रम पर भगवान राम और भरत के मिलन का सुंदर चित्रण मनमोहक झांकी के साथ प्रस्तुत कर विस्तार से वर्णन किया।राजा दशरथ के देहांत के बाद गुरु वशिष्ठ भरत और शत्रुघ्न को ननिहाल से बुलवाकर राजा दशरथ के अंतिम संस्कार के बाद गुरु वशिष्ठ भरत को राजपाठ संभालने को कहते हैं।इस पर भरत इनकार कर देते हैं और तीनों माताओं व अयोध्या की सेना साथ लेकर भगवान श्रीराम को मनाने वन के लिए निकलते हैं।भरत को सेना सहित आता देख लक्ष्मण को शंका होती है तब श्रीराम उन्हें समझाते हैं कि भरत जैसा भाई इस दुनिया में हो ही नहीं सकता।इसी दौरान भरत पहुंच जाते हैं।श्रीराम उन्हें गले लगा लेते हैं इस तरह चित्रकूट में भगवान श्रीराम और भरत का मिलाप हुआ।महाराज ने बताया कि जैसे ही राजकुमार भरत अपने बड़े भाई श्रीराम को देखते हैं,वे उनके पैरों में गिर जाते हैं और उन्हें दण्डवत प्रणाम करते हैं,साथ ही साथ उनकी आँखों से अविरल अश्रुधारा बहती हैं और इधर भगवान राम भी दौड़कर उन्हें ऊपर उठाते हैं और अपने गले से लगा लेते हैं,दोनों ही भाई आपस में मिलकर भाव विव्हल हो उठते हैं,अश्रुधारा रुकने का नाम ही नहीं लेती और ये दृश्य देखकर वहाँ उपस्थित सभी लोग भी भावुक हो जाते हैं तब राजकुमार भरत पिता महाराज दशरथ की मृत्यु का समाचार बड़े भाई श्रीराम को देते हैं और इस कारण श्रीराम, माता सीता और छोटे भाई लक्ष्मण बहुत दुखी होते हैं।भगवान श्रीराम नदी के तट पर अपने पिता महाराज दशरथ को विधिविधान अनुसार श्रद्धांजलि देते हैं।अगले दिन जब भगवान राम,भरत आदि पूरा परिवार,महाराज जनक और सभासद आदि बैठे होते हैं तो भगवान राम अपने अनुज भ्राता भरत से वन आगमन का कारण पूछते हैं तब राजकुमार भरत अपनी मंशा उनके सामने उजागर करते हैं कि वे उनका वन में ही राज्याभिषेक करके उन्हें वापस अयोध्या ले जाने के लिए आए हैं और अयोध्या की राज्य काज संबंधी जिम्मेदारी उन्हें ही उठानी हैं।वे ऐसा कहते हैं महाराज जनक भी राजकुमार भरत के इस विचार का समर्थन करते हैं परन्तु श्रीराम ऐसा करने से मना कर देते हैं।वे अयोध्या लौटने को सहमत नहीं होते क्योंकि वे अपने पिता को दिए वचन के कारण बंधे हुए हैं।