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श्रीमद्भागवत गीता जीवन की हर शंका का समाधान करती है - श्री नन्दकिशोरदास जी


 श्रीकृष्ण-रुक्मिणी विवाह पर जयकारों से गूंज उठा पांडाल

सिंगोली(निखिल रजनाती).जगत में भगवान की कृपा के बिना कुछ भी संभव नहीं है।भगवान के नाम से ही सारे पाप दूर होते हैं।मानव मात्र को ही समाज में अच्छे कर्म करना चाहिए।इंसान को प्राप्त ओहदे का सदुपयोग करना चाहिए व फल की कामना किए बगैर कर्म करते रहना चाहिए।अच्छे कर्म का फल हमेशा अच्छा  और बुरे कर्म का फल हमेशा बुरा ही होता है इसलिए हमें हमेशा सत्कर्म करना चाहिए।श्रीमद्भागवत गीता मनुष्य के जीवन की हर शंका का समाधान करती है।यह उपदेश संत नन्दकिशोरदास जी महाराज ने सिंगोली नीमच मार्ग पर स्थित कछाला श्रीनारायण गौशाला परिसर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में मौजूद श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए कहे।नन्दकिशोरदास जी महाराज ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण जब मात्र छह दिन के थे तब राक्षसी पुतना का वध किया था।कथावाचक श्री दास ने महारासलीला के बारे में बताया कि इसमें भगवान श्रीकृष्ण व गोपियों की रासलीला के निश्चल प्रेम का प्रमाण मिलता है।शरद पूर्णिमा की रात यमुना तट पर महारास का आयोजन किया गया था जिसमें जितनी गोपियाँ उतने श्रीकृष्ण ने महारास की थी।कथा के दौरान भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी विवाह की वरमाला पर जमकर फूलों की बरसात हुई।महाराज ने भागवत कथा के महत्व को बताते हुए कहा कि जो भक्त प्रेमी श्रीकृष्ण रुक्मणि के विवाह उत्सव में शामिल होते हैं उनकी वैवाहिक समस्या हमेशा के लिये समाप्त हो जाती है।कथा वाचक श्री दास ने कहा कि  सर्वेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज में अनेकानेक बाल लीलाएं की।कथा में भगवान का मथुरा प्रस्थान,कंस का वध,महर्षि सांदीपनी के आश्रम में विद्या ग्रहण करना,कालयवन का वध,उद्धव-गोपी संवाद,उद्धव द्वारा गोपियों को अपना गुरु बनाना,द्वारका की स्थापना इत्यादि कथाओं का संगीतमय भावपूर्ण पाठ किया गया।कथा में महाराज श्री दास ने कहा कि आजकल के लोग भगवान कृष्ण व उनकी लीलाओं को मानवीय समझते हैं और वे बेफिजूल वाद-विवाद करते हैं,वे अपनी मति के अनुसार ही भगवान की चीरहरण लीला,माखनचोरी लीला,गोवर्धन लीला,रासलीला इत्यादि लीलाओं का अर्थ समझते हैं लेकिन वे इन लीलाओं के पीछे छिपे गुण रहस्यों को समझने का प्रयास नहीं करते।दृष्टांत के माध्यम से समझाया कि भीलनी माई,धन्ना जाट,कर्माबाई,नरसी भक्त जैसे अनेकों भक्तों ने किसी विद्यालय से विद्या प्राप्त नहीं की थी लेकिन उनकी प्रभु के साथ सच्ची प्रीति थी।इस प्रीति से ही उनके अंदर ज्ञान प्रकट हुआ।वे सभी भक्त शिरोमणि बनकर विश्व में विख्यात हुए।कथा के दौरान महाराज श्री ने भगवान श्रीकृष्ण की संदीपनी आश्रम में ही शिक्षा के बारे में बताया।उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता सांदीपनी आश्रम में हुई। उन्होंने गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि गोविंद से बड़ा गुरु होता है जो हमें गुरु का परिचय कराता है।उन्होंने कहा कि भागवत जीवन का अमृत है।यह जीवन की हर समस्या और शंका का समाधान करती है।महर्षि वेद व्यास ने इसमें सब कुछ लिखा है। इस पुराण को लिखने के बाद उन्हें कुछ और लिखने की आवश्यकता ही महसूस नहीं हुई।उन्होंने कहा है कि सनातन धर्म सबसे प्राचीन धर्म है।जब हम नहीं थे तब भी यह धर्म था और जब हम नहीं होगें तब भी यह धर्म होगा।यह धर्म हमारे जीवन चक्र का मूल आधार है।सनातन धर्म बट वृक्ष के समान है।उन्होंने कहा कि यदि हमने श्रीमद्भागवत कथा को अपने आचरण में आत्मसात कर लिया तो अवश्य ही कल्याण होगा।

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