सिंगोली(निखिल रजनाती)। भारतीय संस्कृति में चार पुरुषार्थ कहे हैं-धर्म पुरुषार्थ,अर्थ पुरुषार्थ,काम पुरुषार्थ व मोक्ष पुरुषार्थ।हमारे आचार्यों ने सबसे पहले धर्म पुरुषार्थ रखा है और धर्म पुरुषार्थ पूर्वक ही अर्थ और काम पुरुषार्थ करने को कहा गया है।धर्म के बिना अर्थ अनर्थ का कारण होता है।यह बात झांतला में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षा प्राप्त व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमानसागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री सुप्रभसागर जी महाराज ने 16 जून शुक्रवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि धर्म के बिना काम जीवन को तमाम कर देता है।धर्म नियंत्रित अर्थ परमार्थ के सिद्ध का साधन और धर्म से नियंत्रित काम आत्मराम से जोड़ने का साधन है।अर्थ पुरुषार्थ को नियंत्रित करने के लिए संतोष भाव की तथा काम पुरुषार्थ को नियंत्रित करने हेतु संयम की आवश्यकता होती है।संतोष भाव धन के प्रति आसक्ति कम करता है तो संयम काम से निष्काम बना देता,अर्थ पुरुषार्थ को दान में और काम को वात्सल्य में परिवर्तन कर धर्म और मोक्ष पुरुषार्थ साधे जा सकते है।धर्म ही सुखी जीवन का आधार है,धर्म से नियंत्रित जीवन आंतरिक अनुशासन को लाकर जीवन के विकास को प्राप्त करने का महत्वपूर्ण साधन है।आगामी दिनो में मुनिश्री ससंघ के सानिध्य में झांतला में आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज का आचार्य पदारोहण समारोह व आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का दीक्षा दिवस बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाएगा।