सिंगोली(निखिल रजनाती)। विवेक और बुद्धि में अन्तर है,विवेक अर्थात होश का जाग्रति का जीवन जीना तथा बुद्धि का अर्थ विचारों का जीवन जीना। विचार व्यक्ति को भ्रमित करते हैं,भटका सकते हैं।यह बात ग्राम झांतला में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षा प्राप्त व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमानसागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री सुप्रभसागर जी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।उन्होंने कहा कि विवेक अंकुश लगाने का कार्य करता है,विवेकहीनता के दो कारण हैं एक आसक्ति और दूसरा कारण है उतावली।आसक्ति नशे के समान है जो व्यक्ति को गाफिल कर देती है,नशा विवेक को नष्ट कर देता है,व्यक्ति को अपना जीवन सुपड़े के समान बनाना चाहिए जो सार सार को ग्रहण कर निसार को बाहर फेक देता है,सुपड़ा विवेक का प्रतीक है जबकि चालनी विवेकहीनता का प्रतीक है जो सार को नीचे गिरा कर निसार को रख लेती है।विचारों में तर्क-वितर्क होता है,विवेक में सतकर्ता अर्थात सावधानी होती है।मुनि श्री ने बताया कि ज्ञान अर्जन करना अलग है और विवेक होना अलग है,ज्ञान तो एक पशु के पास भी होता है पर उसके पास विवेक नहीं होने के कारण वह पशु कहलाता है वहीं मुनिश्री दर्शितसागर जी महाराज ने भी कहा कि सुख पाने के लिए आत्मा को भगवान की सत्ता को जानना होगा,उपदेश को सुनने मात्र से,पढने मात्र से कल्याण नहीं होता है उसके लिए उपदेश को आत्मसात करना होगा।समय रहते जागो संयम पथ पर चढकर अपने आचरण आचार-विचार,रहन-सहन,खान-पान,व्यवहार को ठीक रखो एवं धर्म के कहे अनुसार जीवन को ढालकर सुख का मार्ग प्राप्त कर सकते हैं।इस अवसर पर क्षैत्रीय विधायक और मध्यप्रदेश शासन के कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश सकलेचा ने मुनिश्री सुप्रभसागर जी महाराज व मुनिश्री दर्शितसागर जी महाराज को श्रीफल अर्पित कर आशीर्वाद लिया।23 जून शुक्रवार को प्रातःकाल सन्त शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का मुनि दीक्षा दिवस मुनिश्री ससंघ के सानिध्य में बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाएगा।