सिंगोली(निखिल रजनाती)। संसार का प्रारंभ दो से होता है और संसार दुःख का कारण है। जहाँ दो है वह द्वंद है,विकला है और जहाँ एक हैं वहाँ कोई द्वंद नहीं,विकल्प नहीं है।जीव आत्मा और कर्म दो मिलते हैं तो संसार बनता है।आत्मा से कर्म का बन्धन छूटते ही आत्मा सुख और शान्ति का अनुभव करता है।भगवान नेमिनाथ ने भी अपनी आत्मा से कर्मों को पृथक कर दिया तो वे सुख और शान्ति को प्राप्त हो गए।उक्त बात 25 जून रविवार को प्रातःकाल भगवान नेमिनाथ के मोक्ष कल्याणक के अवसर पर आचार्य श्रीविद्यासागर जी महाराज से शिक्षा प्राप्त व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री सुप्रभसागर जी ने कही।मुनि श्री ने कहा कि तीर्थकरों ने सात तत्व कहे हैं,यद्यपि उनके गणित को जो समझ ले वह आत्म शान्ति का सूत्र प्राप्त कर सकता है।जीव और कर्म रूपी अजीव मिलकर संसार बनाते है उनका परस्पर गुणा करने पर आसव बन्दा होकर संसार बढता है।जीव व अजीव का आपस में भाग देने पर संवर और निर्जरा होती है तथा जीव में से अजीव को हटा देने पर मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।भगवान नेमिनाथ को पशुओं के बन्धन देखकर अपना संसार बन्धन याद आ गया और पशुओं के बन्धन खुलवाकर स्वयं के कर्म बन्धन को खोलने की याद आ गई इसलिए घर का त्यागकर मोक्षमार्ग पर चल दिए और स्वतंत्र होकर मोक्ष को प्राप्त हो गए।इस अवसर पर मुनि श्री दर्शितसागर जी महाराज ने कहा कि संसार में संतोष,धैर्य,धीरता व विनय,विवेक ही उन्नति का कारण होता है,आप विवेक से किसी भी काम को श्रद्धा भक्ति से करेंगे तो उसकी पूर्ति अवश्य होती है,संतोषी सदा सुखी रहता है परन्तु मानव मन चंचलता का प्रतीक है,मन को नियंत्रित कर पाना बडा कठिन से कठिन है।मन में विचारों की उथल-पुथल चलती रहती है,मन की एक विशेषता यह भी है कि मन में कोई भी एक विचार अधिक समय तक नहीं टिकता है।मन में विचारों के प्रवेश एवं निष्कासन पर नियंत्रण करना निः संदेह बहुत मुश्किल है किन्तु जो व्यक्ति अपने मन पर नियंत्रण कर लेता है वह तनाव मुक्त हो जाता है।आज नेमिनाथ भगवान के मोक्ष कल्याणक महोत्सव पर भगवान को निर्वाण लाडू चढाया गया।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।