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गुणों की शुद्धि के लिए प्रभु की भक्ति अन्तरंग से होनी चाहिए- मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)। भगवान की भक्ति और पूजा से गुण शुद्धि होती है अर्थात आत्मा के गुणों पर पड़ा पर्दा और कर्म का आवरण हट जाता है।गुणों की शुद्धि के लिए प्रभु की भक्ति अन्तरंग से होनी चाहिए मात्र बाह्य क्रिया मार्ग नहीं।यह बात नगर के पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षा प्राप्त व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 27 जून मंगलवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि जब तक अन्तरंग भाव उस भक्ति के साथ नहीं होगें तब तक वह भक्ति फलदायी नहीं बन सकती है।जैसे शराब का कुल्ला करने मात्र से उसका नशा नहीं चढ़ता वैसे ही  बाहर की क्रिया करने मात्र से कर्मों की निर्जरा नहीं हो सकती है।घण्टों भगवान के सामने बैठकर केवल पूजा,भजन,कीर्तन करने से श्रद्वान मजबूत नहीं होता है,उसके लिए अन्दर भी विश्वास आस्था की जरूरत होती है।जब तक आत्मा का श्रद्धा गुण शुद्ध नहीं होता है तब तक ज्ञान और चरित्र भी शुद्ध नहीं हो सकता है।भगवान की भक्ति से विवेक वैराग्य और दया गुणों में भी शुद्धि होती है।श्रद्धा गुण की शुद्धि ही तीर्थंकर पद को प्रदान करने वाली है।समीचीन श्रद्धा गुण के बिना आज तक कोई अरिहन्त अवस्था को प्राप्त नहीं हुआ।कुछ लोग भक्त बिना भगवान बनने की बात करते हैं।संसार से कम कठिनाई मोदक मार्ग में है यही मार्ग सुख की ओर ले जाने वाला है।भक्ति का मार्ग परम्प से मुक्ति का कारण कहा है,भक्ति से कर्मों की निर्जरा और शुभ का आसव होता है जो नर को णारायण बना सकती है।इस दौरान मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने कहा कि मां, महात्मा और परमात्मा ये तीनों हमारी जिंदगी के मूलाधार है जिन्दगी में तीन चरण है,तीन सोपान है,तीन पायदान है।एक बचपन दूसरा जवानी और तीसरा बुढापा।जिन्दगी के इन तीन पायदानों के लिए हमने तीन महत्वपूर्ण शब्दों को चुना जो है मां,महात्मा और परमात्मा।मां बचपन को संभाल देती है,जवानी में हम भटकते है तो महात्मा उपदेश देकर संभाल देता है,सुधार की राह बताते हैं और बुढ़ापे में हमारी मौत को परमात्मा सुधार देता है।बचपन को मां संभालती है,योवन को महात्मा संभालता है और बुढ़ापे को परमात्मा संभालते है।जीवन में अच्छाईयां देरी से आती है और जाने में देरी नहीं करती और बुराईयां जल्दी आती है और जाती बड़ी मुश्किल से है।मुनिश्री ससंघ के सानिध्य में अष्टान्हिका महापर्व के पावन अवसर पर नंदीश्वर विधान के दूसरे दिन  समाजजनों ने भक्ति भाव के साथ पूजन अर्चन किया।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।

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