सिंगोली(निखिल रजनाती)। नगर के पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षा प्राप्त व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमानसागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने अष्टान्हिका महापर्व के तीसरे दिन 28 जून बुधवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि गुणों की शुद्धि को बनाए रखने के लिए सावधानी रखना आवश्यक है।सम्यक दर्शन को शुद्ध बनाए रखने के लिए हमारे आचार्यों ने निःशंकित आदि आठ अंग कहे है।जैसे मानव का दांया पैर बिना संशय के आगे बढ़ने के लिए पहले उठता है वैसे ही सच्चे देव शास्त्र गुरु पर विश्वास रखना चाहिए।शंका रहित वीतराग देव के कहे तत्त्वों को स्वीकारना निःशंकित अंग कहलाता है।एक कीडा हरे भरे पेड़ को भी अन्दर- अन्दर से खोखला कर देता है वैसे ही शंका रूपी कीडा सम्यक दर्शन गुण को अन्दर ही अन्दर समाप्त कर देता है।सम्यक दर्शन को निर्मल बनाये रखने के लिए ज्ञान की नहीं शंका रहित श्रद्धान की आवश्यकता होती है।सत्य और शंका एक साथ नहीं रह सकते हैं।आज वासनामयी प्रेम के लिए युवा वर्ग धर्म-माता पिता पर विश्वास न करके उन्हें छोड़ रहे हैं परन्तु जब वह प्रेम कम होता है तब उन्हें पश्चाताप करना पड़ता है।सच्चे मार्ग पर विश्वास कर एक सप्त व्यसन में फंसे अंजन चोर ने मुनि दीक्षा लेकर निरंजन पद प्राप्त कर लिया।जब एक चोर भी भी देव शास्त्रत गुरु पर शंका रहित श्रदान करके मुक्त हो गया तो फिर जो निरन्तर सच्ची श्रद्धा भक्ति रखते हैं वे संसार से पार नहीं जायेगे वे तो अवश्य जायेंगे।संसार जंगल से निकलने के लिए अपनी श्रद्धा को सुदृढ़ और निर्मल रखो।इस दौरान मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने कहा कि भगवान का अभिषेक शान्तिधारा करो इससे हमारे विकारों मे शुद्धि होती है,हमारे मन में शान्ति आती है।हर श्रावक का धर्म है कि जल,गंध,अक्षत,अष्ट द्वव्य से अपनी भक्ति की अभिव्यक्ति ही पूजा है,यह शुभ प्रयोग का साधन है यह आत्मा शुद्धि का अनुपम अनुष्ठान है।अभिषेक पूजन के क्षणों में भगवान के गुणों में अनुरक्त भक्त मन की निर्मरता ही एक ओर जहां पूज्य अभिवर्धक है वहीं पूर्व संचित पाप कर्मों के क्षय का भी कारण हैं।अनंत पुण्य के योग से हमें मनुष्य योनी मिली है,बुद्धि मिली है क्योंकि मनुष्य को सभी जीवों में श्रेष्ठ बताया है।मनुष्य अपनी बुद्धि का उपयोग/ प्रयोग कर किसी भी परिस्थिति में ऊपर उठ सकता है,मनुष्य को अपनी बुद्धि का उपयोग तत्व चिंतन में करना चाहिए।अष्टान्हिका महापर्व के तीसरे दिन मुनिश्री ससंघ के सानिध्य में अभिषेक,शान्तिधारा व श्री नंदीश्वर विधान पूजन सभी ने भक्ति भाव के साथ की।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।