सिंगोली(निखिल रजनाती)। एक छोटा बच्चा जब चलना सीखता है तो वह कई बार गिरता है सम्भलता है पुन: खड़ा होता है,पुन: गिरता है उसे बड़े लोग उसे पुचकारते है,उसका उत्साह बढ़ाते है उसी प्रकार धर्म मार्ग में चलने वाला साधक उस बालक के समान ही है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षा प्राप्त व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 09 जुलाई रविवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि वह जब अपनी साधना से गिरने लगे तो उसे पुचकारो,उसे पुन: खड़े होने के लिए प्रोत्साहन दो,इसे ही आचार्यों ने स्थितिकरण नाम का सम्यकदर्शन का अंग कहा है।स्थितिकरण अंग कहता है कि गिरते हुए को सम्भालो उसे सहारा दो,उसे सहायता दो।गिरना उतना बुरा नहीं है जितना गिराना बुरा है।यदि आपका कोई प्रिय व्यक्ति व्यसन में फंस जाता है तो क्या आप उसे यूं छोड़ देते हो ? नहीं ना,उसी प्रकार धर्म से डिगते हुए को सहारा देना चाहिए।व्यक्ति के धर्म मार्ग से विमुख होने के प्रमुख कारण है आर्थिक,शारीरिक व मानसिक अर्थ के लिए व्यक्ति अनर्थ भी करता है।समाज में जो धनहीन है या जो आर्थिक रूप से कमजोर है उन्हें सहायता देने का कार्य समाज का है।शारीरिक रोगों के कारण भी की लोग धर्म परिवर्तन करते हैं।टोने टोटके जैसै कार्यों को कर स्वयं नरक गति का पात्र हो रहा है जिन्हें वह प्रेरणा दे रहा है।इस अवसर पर मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने कहा कि संसार में जन्म सभी का होता है,इंसान का,संत का,महन्त का,भगवन्त का,अरिहंत का।जीवन जीना भी सभी जानते है लेकिन जीवन बनाने का ज्ञान सभी में नही होता।जीवन पशु भी जीता है लेकिन जीवन बनाने का काम एक मानव की आत्मा ही कर सकती है।हम जीवन को स्वच्छ सुंदर बनाए धर्म के प्रति भावना बनाए तो ही यह मानव जीवन की सफलता एवं सम्पूर्ण उद्देश्य है वही सच्चा श्रावक है।तीर्थंकर परमात्मा में संसार के प्राणी मात्र के प्रति असीमित करुणा होती है उसी करुणा के आधार पर वह पूज्यनीय बन गए।हम उनके बताए गये मार्ग पर चल रहे है।इस अवसर पर बिजोलियाँ, धनगाँव,थडोद,बोराव सहित अन्य गांवों के समाजजन उपस्थित थे।