सिंगोली(निखिल रजनाती)।साधना की उच्चता के द्वारा जो अन्तर्जगत की यात्रा प्रारंभ की थी उसका एक पड़ाव है-कैवल्य की प्राप्ति।मुनि दीक्षा धारण करने के बाद तीर्थंकर महामुनि अपने साधना को प्रखर से प्रखरतर करते जाते है।यह बात नगर के पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षा प्राप्त व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 10 जुलाई सोमवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि अन्तर्यात्रा को गति देते हुए निरन्तर आत्म विशुद्धि का अनुभव करते हुए साधना के बल पर वे कर्मों को नष्ट कर आत्म ज्ञान की ज्योति को प्राप्त कर लेते हैं।केवल ज्ञान वह ज्ञान है जिसे प्राप्त करने के बाद कुछ भी जानना शेष नहीं रहता है।कैवल्यत्व को प्राप्त कर तीर्थंकर अरिहन्त परमात्मा कहलाते है उन्हें जिनेन्द्र भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने इन्दियों को जीत लिया है।वे सर्वज्ञ भी कहलाते हैं क्योंकि उनके ज्ञान में तीनों लोकों के सभी चराचर पदार्थ दिखाई देते हैं।तीर्थंकर भगवान को केवलज्ञान उत्पन्न होने के बाद प्रकृति भी हर्षित रोमांचित हो जाती है इसलिए सभी ऋतु के फूल -फल उत्पन्न हो जाते हैं।चारों ओर सुख शान्ति का अनुभव होता है।कर्म के भार से हल्के हो जाने के कारण उनका आकाश में ही गमन होता है।जहाँ तीर्थकर भगवान विराजमान होते है या विहार करते हैं वहाँ पर क्रूर से क्रूर प्राणी भी अपनी क्रूरता छोड़ देता है इसलिए सिंह और गाय भी एक घाट पर पानी पीते है।उनका सान्निध्य पाकर शत्रुता का भाव समाप्त हो जाता है।सर्प और नेवला भी एक साथ उनके चरणों में आकर बैठ जाते हैं।तीर्थंकर भगवान के मनुष्य के समान आहार नही होता है,उनकी किसी से शत्रुता नहीं रहती है,उनका शरीर स्फटिक मणि के समान निर्मल हो जाता है।देव लोग भी बड़ी भक्ति भाव के साथ पूजन करने उनके चरणो में आते हैं।तीर्थंकर भगवन्तों की साधना को देखकर मनुष्य को विचारना चाहिए कि हम उतनी साधना नहीं कर सकते है पर उनके चरणों की पूजा कर उनका सान्निध्य प्राप्त कर जीवन में पुण्यार्जन कर अपना भविष्य संवार सकते हैं।जब उनके चरणो में बैठकर तिर्यंच भी अपना बैर भाव भूल जाते है तो मनुष्य अपनी शत्रुता को छोड़कर प्रेम वात्सल्य से रहकर अपने कल्याण भाग को प्राप्त कर सकता है।इधर मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज के सानिध्य में प्रातःकाल युवाओं को ध्यान योग व धर्म की छोटी छोटी बातों व सायंकाल पाठशाला के बच्चों में धर्म के संस्कार हेतु पढ़ाया जा रहा है।