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भक्त की भक्ति भगवान को भी अपनी और खींच लाती है - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)। पुण्यशाली जीवों को ही भगवान का दर्शन होता है महापुण्यशाली जीवों को उनके नगर मे भगवान का साक्षात् दर्शन होता है।तीर्थंकर भगवान जब भी विहार करते है तो ऐसे ही महापुण्यशाली जीवों के पुण्य से उनकी ओर गमन करते है।कहा जाता है कि भक्त की भक्ति भगवान को भी अपनी ओर खींच लाती है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षा प्राप्त व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 12 जुलाई बुधवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि तीर्थंकर का जब भी श्री विहार होता है सारी पृथ्वी कंकर पत्थर कोटों से रहित हो जाती है।पृथ्वी धन-धान्य से परिपूर्ण हो जाती है,नगर-नगर,गाँव-गाँव धर्मोपदेश देकर तीर्थंकर भगवान भव्य जीवों को कल्याण का मार्ग बताते हैं।जब वे अपनी आयु को अन्त जानते है तब सब कुछ छोड़कर आत्मा के ध्यान में लीन हो जाता है।उनके मन वचन  काय की सभी प्रवृती रुक जाती है,वे ध्यान के द्वारा शेष बचे कर्मों का नाशकर मुक्ति पद को प्राप्त हो जाते है।आचार्यों ने निर्वाण का अर्थ जीवन से मुक्त कहा है अर्थात वे अब पुन: जीवन अर्थात् जन्म नहीं लेंगे।उन्होंने संसार की क्षणिक शान्ति को छोड़कर शाश्वत शान्ति को प्राप्त कर लिया।वे अब मोक्ष में हमेशा विश्राम करेंगे संसारी प्राणी जब भी कोई शारीरिक श्रम करता है तो उसे विश्राम की जरुरत होती है।इस अवसर पर मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने भी कहा कि जीवन में देव,शास्त्र और गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धान व भक्ति करना चाहिए जिससे हमारा कल्याण हो जाए।भगवान का गुणानुवाद करने से पुण्य आश्रव होता है,दिनभर आप जो कार्य करते है अगर उन कार्यों के भाव और परिणाम विचार अच्छे है तो पुण्य का आश्रव होता है।मुनिश्री द्वारा युवाओं को प्रातः काल ध्यान योग व सायंकाल पाठशाला के छोटे छोटे बच्चों को धर्म के संस्कार सिखाए जा रहे हैं।

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