सिंगोली(निखिल रजनाती)। गृहस्थी के कार्यों को करने में जो पाप होते हैं उनका प्रक्षालन करने के लिए तीर्थंकर भगवन्तों ने षट् आवश्यक करने के लिए कहा।छ: आवश्यकों को प्रतिदिन उन श्रावकों के लिए निर्धारित किया है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षा प्राप्त व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 14 जुलाई शुक्रवार को प्रातःकाल मन्दिर जी में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि मुख्य रूप से आचार्यों ने श्रावकों के लिए जिनेन्द्र भगवान की पूजा और दान देना महत्वपूर्ण माना है।पूजा अर्थात इष्ट के गुणों का गुणगान करना।पूजा के द्वारा वर्तमान में शान्ति- सन्तोष प्राप्त होता है तो आगामी समय में धन-सम्पदा की प्राप्ति होती है।कुछ लोग पूजा को क्रियाकाण्ड कहते है जबकि वह क्रिया काण्ड मात्र नहीं है।यह व्यक्ति के जीवन के रूपान्तरण का आधार है।पूजा ऐसी अध्यात्मिक क्रिया है जिसके द्वारा हम भी परमात्मा बन सकते हैं।पूजा की क्रिया के साथ हमारे अन्तरग परिणाम भी जुड़ना चाहिए वही अरिहन्त की सच्ची भक्ति कही जाती है।पूजा करने से पूर्व उसकी आवश्यकता क्यों है? जब यह प्रश्न उठता है तब आचार्य सामाधान देते हुए कहते है कि जहाँ पाप की बहुलता है वहाँ परिणाम जुडना होता है।पूजा में आत्मिक परिणाम जुड़ने पर आचार्यो ने इसे सम्यक्त वर्धनी क्रिया कहा है।पूजा किसकी करना क्यों करना चाहिए और पूजा का फल क्या है,पूजा करने का अधिकारी कोन है इसको समझना भी आवश्यक है क्योंकि कि पूजा के माध्यम से सम्यग्दर्शन आदि की शुद्धि होती है।इस दौरान मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने कहा कि चातुर्मास काल में छोटी-छोटी बातों व छोटी छोटी चीजों को त्याग करेंगे तो ही आपका आत्मकल्याण व चातुर्मास कराना सफल होगा।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।