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याचना करने वाले का यश और कीर्ति नष्ट हो जाती है - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिगोली(निखिल रजनाती)।जो व्यक्ति याचना करता है उसका बड़प्पन समाप्त हो जाता है।याचना करने वाला अपने यश कीर्ति को नष्ट कर देता है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षा प्राप्त व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 19 जुलाई बुधवार को प्रातः काल मन्दिर जी में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि दिगम्बर श्रमण अयाचक वृत्ति का पालन करते हैं।वे अपने पास तिल तुष मात्र भी परिग्रह नहीं रखते है फिर भी वे किसी से भी कुछ मांगते नहीं है।उनकी इस अयाचक वृत्ति के कारण ही धनवान मनुष्य क्या देवगण भी उनकी सेवा के लिए उपस्थित रहते है।भक्तगण उनकी सेवा में तत्पर रहते है और इसी अवसर की प्रतिक्षा में रहते है कि मुनिराज की किसी भी चर्या में या आवश्यकता में हमें योगदान का अवसर मिल जाए,श्रमणों की इस अयाचक वृत्ति के कारण ही भारत के बड़े-बड़े सम्राट उनकी सेवा करना अपना परम सौभाग्य मानते थे।भारत के महान सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य आचार्य अन्तिम श्रुतकेवली आचार्य श्री भद्रबाहु स्वामी के साथ दक्षिणापथ की ओर गया।उनकी सेवा की और स्वयं ने भी दिगम्बर श्रमण दीक्षा को धारण किया था।उनकी गुरु भक्ति और अयाचक वृत्ति के प्रभाव से देवों ने इस पंचमकाल में भी उनके लिए नगर बसाकर आहार की व्यवस्था की।याचना करने में दीनता का भाव आता है और दिगम्बर श्रमण दीनता से रहित होते है।इस दौरान मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने कहा कि संसार के आवागमन से मुक्त होने के लिए आपको देव,शास्त्र, गुरु,सम्यक दर्शन,सम्यक ज्ञान, सम्यक चरित्र,अणुव्रत,महाव्रत, तप और संयम के पुरुषार्थ करने पर सिद्धालय की प्राप्ति हो सकती है।आपको असीन पुण्य से तीर्थंकर कुल जैन धर्म में मनुष्य पर्याय मिली है इसलिए देव,शास्त्र,गुरु,रतनत्रय रुपी धर्म देशना से जीवन में परिवर्तन लाना चाहिए वही मुनिश्री प्रातःकाल युवाओं को ध्यान योग भी करा रहे हैं जिसमें बडी संख्या मे युवा वर्ग भाग ले रहे हैं।

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