सिंगोली(निखिल रजनाती)। इन्द्रों जैसा जन्म कल्याण के समय महान उत्सव के साथ अभिषेक किया था,मैं भी उत्सवपूर्वक,पूर्ण उत्साह के साथ श्रीजी के अभिषेक के लिए जिन बिम्ब को सिंहासन पर स्थापित करता हूँ।ऐसी पवित्र भावना के साथ श्रद्धालु श्रावक भगवान के अभिषेक की क्रिया को करता है।यह बात सिंगोली नगर में चातुर्मास हेतु विराजित आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज से शिक्षित एवं आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज से दीक्षित मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 20 जुलाई गुरुवार को प्रातःकाल अभिषेक पाठ का अर्थ बताते हुई कही।मुनि श्री ने आगे कहा कि भगवान का अभिषेक जो पूर्ण मनोयोग से करता है,उसकी सारी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।भगवान का अभिषेक करने और देखने दोनों से सातिशय पुण्य की प्राप्ति होती है। प्रत्येक होने वाले भगवान के अभिषेक में जो पूर्ण क्रिया को पूर्ण शुद्धि से करता है वह भी आगे आगामी भव में पाण्डुशिला पर इंद्रों के द्वारा अभिषेक का पात्र होता है।जिनालयों में उत्कृष्ट भावों के साथ द्रव्य और उपकरण भी उत्कृष्ट होना चाहिए।श्रीजी के अभिषेक-पूजन में स्टील,एलुमिनियन जैसी निकृष्ट धातु के बर्तनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।अभिषेक के पात्र टूटे-फूटे नहीं होना चाहिए।आचार्य पूज्यपाद स्वामी ने कहा है कि भगवान का अभिषेक महोत्सव पुण्य प्राप्ति के साधन के साथ कर्म निर्जरा का भी हेतु है इसलिए अभिषेक क्रिया में सपरिवार सम्मिलित होना चाहिए।इन्द्र भगवान के अभिषेक पूजन हेतु अपने परिवार देवों के साथ आता है।इस दौरान मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि आज दर्शन कम प्रदर्शन ज्यादा होने लगा है।धर्म के क्षेत्र में भी और लौकिक जीवन में भी इस कारण व्यक्ति ऋण लेकर उस प्रदर्शन की पूर्ति करने में लगा है।हमारे पूर्वजों ने कहा है कि जितनी चादर हो उतने ही पैर फैलाओ।ऋण लेकर घी पीने की अपेक्षा सुख की सूखी रोटी अधिक गुणकारी होती है।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।