सिंगोली(निखिल रजनाती)। गृहस्थ जीवन के कार्यों से जो पाप का अर्जन होता है वह भगवान के मन्दिर आकर वहाँ के कार्यों के करने से नष्ट हो जाता है।घर में सफाई करते है तो पाप का अर्जन होता है और जिनालय में सफाई करने से उसका रख-रखाव करने से पुण्य का अर्जन और पाप का विसर्जन होता है।यह बात नगर में विराजित आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षित एवं आचार्य श्री वर्धमान सागर जी से दीक्षित मुनिश्री सुप्रभसागर जी महाराज ने 21 जुलाई शुक्रवार को प्रतिदिन के प्रातःकालीन स्वाध्याय के दौरान कही।उन्होंने आगे कहा कि व्यापार-व्यवसाय के द्वारा जो पाप का अर्जन होता है उसके प्रक्षालन के लिए न्योंयोचित द्रव्य मन्दिर में दान करना चाहिए।मन्दिरों में दान पात्रों पर पाप प्रक्षालनपात्र लिखा जाना चाहिए क्योंकि आरम्भ के द्वारा जो पाप हुआ उसका प्रक्षालन दान के माध्यम से ही हो सकता है।भगवान के अभिषेक की महिमा बताते हुए मुनिश्री ने कहा कि स्नान की आवश्यकता उसे होती है जिसके साथ मल लगा हो।हमारा शरीर मल से युक्त है इसलिए मनुष्य को स्नान की आवश्यकता होती है परन्तु भगवान तो सभी प्रकार के मल से रहित हो गए हैं,अत: उन्हें स्नान की आवश्यकता नहीं पड़ती है।भगवान का अभिषेक तो श्रावक अपने परिणामों को निर्मल बनाने के लिए लिए करता है।अभिषेक के समय ही हम भगवान का स्पर्श कर सकते है अन्य समय नहीं।साक्षात् भगवान को स्पर्श करना सम्भव नहीं है इसलिए हम यहाँ भगवान के बिम्ब का स्पर्श कर स्वयं को सौभाग्यशाली मानते है।सभा को सम्बोधित करते हुए मुनि श्री दर्शित सागर जी महाराज ने कहा कि व्यक्ति जो धम न्याय- नीति के साथ अर्जित करता है,वही धन धर्म के कार्यों में काम आता है वहीं धन सत्यकार्यों में खर्च होता है इसलिए दान करने में न्यायोचित धन का ही देना चाहिए।आपने कथा के माध्यम से बताया कि किस प्रकार का धन कैसे कार्यों में लगता है।इस अवसर पर बड़ी संख्या में समाजजन उपस्थित थे।