सिंगोली(निखिल रजनाती)। जिनधर्म की प्रभावना के लिए पहले स्वयं के अन्तरंग की भावना को शुद्ध करना होगा।व्यक्ति का व्यक्तित्व यदि प्रभावशाली है तो उसका प्रभाव चिरस्थायी होता है।धर्म की प्रभावना के द्वारा तीर्थंकर प्रकृति का बंध हो सकता है।जो प्रभावना वचनों के द्वारा होती है वह अल्पकाल तक ही रहती है और जो आचरण के द्वारा प्रभावना होती है वह चिरकाल बनी रहती है।उक्त बात सिंगोली नगर में चातुर्मासरत आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षित एवं आचार्य श्री वर्धमानसागर जी से दीक्षित मुनि श्री सुप्रभसागर जी महाराज ने 23 जुलाई प्रातःकाल रविवारीय धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कही।उन्होने आगे बताया कि उजाला फैलाना चाहते है तो पहले स्वयं के भीतर का अन्धकार मिटाना होगा।धर्म प्रभावना के लिए भावना महत्वपूर्ण है।विदेशी यात्रा भारत आते थे तो यहाँ की धर्म भावना और संस्कृति से प्रभावित हुए बिना नहीं रहते थे।आचार्य कहते हैं कि धर्म की प्रभावना करने की जिम्मेदारी केवल मुनियों-त्यागी वृत्तियों की ही नहीं है,श्रावक का भी कर्तव्य है कि वह अपने आचरण से धर्म की प्रभावना करे।मुनिगण ज्ञान और तपस्या से तो श्रावक दान-पूजा से धर्म की प्रभावना कर सकता है।आचार्य कहते है कि एक अकेला श्रावक भी अपने आचरण को द्वारा धर्म की महती प्रभावना कर लाखों लोगों को प्रभावित कर सकता है।आचरण का प्रभाव शीघ्र और स्थायी होता है।जिन धर्म की प्रभावना के लिए प्रत्येक श्रावक को अपने सामर्थ्य के अनुसार तन-मन-धन से समर्पित होना चाहिए।धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए मुनि श्री दर्शित सागर जी ने कहा कि जैन धर्म दर्शन में विश्वास करता है,प्रदर्शन में नहीं।आज की युवा पीढी धर्म से दूर होकर प्रदर्शन में विश्वास करती है,उन्हें धर्म मार्ग पर लाने के लिए अब समाज को और परिवार को जाग्रत होने की आवश्यकता है।सभा के प्रारंभ में चित्र अनावरण व दीप प्रज्वलन मनासा से पधारे अतिथियों ने, मंगलाचरण डॉ. निधी जैन,गुना ने,मुनिद्वय के पादप्रक्षालन का सौभाग्य शिवपुरी और सागर से पधारे भक्तगणों ने तथा शास्त्र दान का अवसर महिला मण्डल मनासा ने प्राप्त किया।इस अवसर पर धनगाँव,थडोद,झांतला,बोराव, मनासा,गुना शिवपुरी,सागर आदि स्थानों से भी भक्तगण उपस्थित थे।