मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज का हुआ केसलोचन
सिंगोली(निखिल रजनाती)। भगवान के अभिषेक जल की एक बून्द भी भुक्ति अर्थात् संसार का सुख और मुक्ति लक्ष्मी को प्राप्त कराने में समर्थ है परन्तु श्रद्धा होना चाहिए।श्रद्धा के बिना किसी को भी संसार में प्राप्त नहीं होता है।उक्त बात प्रतिदिन के स्वाध्याय के दौरान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षित और आचार्य श्री वर्धमान सागर जी से दीक्षित मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 24 जुलाई सोमवार को प्रातः काल कही।मुनि श्री ने बताया कि श्रद्धा की मजबूती के बिना धर्म का पालन नहीं हो सकता है।श्रद्धा भक्ति का आधार है।सच्ची श्रद्धा भक्त को भव पार लगा देती है।श्रद्धा के बिना किया गया कार्य अपेक्षित सफलता को प्राप्त नहीं करता है।शारीरिक बीमारियों के निकालने के लिए पहले वैद्य पर या चिकित्सक पर श्रद्धा करनी होगी उसी प्रकार आत्मा में लगी जन्म,जरा,मृत्यी रूपी भयानक रोग भगवान के प्रति सच्चा श्रद्धान करने पर क्षण भर में नष्ट हो सकता है।दिगम्बर श्रमण परम्परा में मुनि कम से कम दो माह और अधिकतम चार माह में अपने हाथों से सिर-दाडी-मूंछ के बालों को उखाड़ते है। वे अपने बालों को सूखी घास के समान शरीर के प्रत्ति निर्ममत्व भाव उखाड़ते है।उस दिन वे प्रायश्चित स्वरूप निर्जला उपवास भी करते हैं।शरीर के प्रति निगोहपन का यह उत्कृष्ट उदाहरण है वहीं मुनिश्री १०८ दर्शितसागर जी महाराज के केसलोच सोमवार को प्रातःकाल हुए।जैन दर्शन में संतों को केशलोचन की प्रक्रिया हाथ से करना बताई गई हैं इसकी अहम वजह यह है कि जैन संत अपरिग्रही होते हैं उनके पास किसी भी प्रकार का परिग्रह नहीं होता इसलिए वह तिलतुष मात्र भी परिग्रह अपने पास नहीं रखते।यहां तक की तन पर वस्त्र भी नहीं पहनते।ऐसे में अहिंसा व्रत की आराधना के लिए शरीर से राग भाव घटाने के लिए जैन संत केशलोचन करते हैं।अपनों को छोड़ने वाला ही अपने बालों को छोड़ता है।केशलोचन से परिषह जय होती है तथा वैराग्य की वृद्धि होती है।इस दोरान बड़ी संख्या में समाजजन उपस्थित थे।