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इन्द्रिय सुख की पूर्ति करना अग्नि में घी डालने जैसा कार्य है - मुनिश्री दर्शित सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)। संसारी प्राणी प्रति समय सांसारिक सुख की ही इच्छा करता है और उसकी पूर्ति करने का प्रयत्न करता है।पर आगम में कहा है कि इन्द्रिय सुख की पूर्ति करना अर्थात अग्नि में घी डालने जैसा कार्य है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षित व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज से दिक्षित मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने 30 जुलाई रविवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि इन्द्रिय सुख कुत्ते की हड्डी के समान है जैसै उसमें कुछ भी रस नहीं रहता उसके चबाते समय कोई स्वाद नहीं आता है वैसै ही इन्द्रिय विषय देखने में अच्छे लगते है पर जो समझदार होता है वह उनसे दूर रहता है।परमात्मा के सिवाय इस सृष्टि में सब नश्वर है और नश्वरता से प्रेम करना ही मानव जीवन में दुख का कारण है।आप लोग इस नश्वर शरीर को सजाने व संवारने में ही जीवन का बहुमूल्य समय नष्ट कर रहे हो।आत्मा को अपने मन को धर्म रूपी ज्ञान से सजाओ व सँवारो तब आप का कल्याण होगा।इस दौरान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने कहा कि आत्मा के गुणों की शुद्धि बनाये रखने के लिए आचार्यों ने आठ गुण कहे तो उनसे विपरीत आठ दोषों से बचने का भी उपदेश आचार्यों ने दिया है जिन्हें भगवान के अस्तित्व पर,उनके वचनों पर और उनके बताए रत्नत्रय मार्ग पर संशय होता है,उन्हें सम्यकदर्शन गुण की प्राप्ति नहीं हो सकती है जिन्हें अभी जिनेन्द्र भगवान के कहे वचनों पर श्रद्धा नहीं है,उनके सम्यकदर्शन पर ही संशय के बादल मंडरा रहे है।जो शरीर संसार व भोगो की चिन्ता में लगा है उसे अपने आत्मतत्व की श्रद्धा नहीं है।जो दूसरों से घृणाभाव रखता हो,दूसरों के गुणों से ईर्ष्या भाव रखता हो,वह अभी आत्मज्ञान से बहुत दूर है।व्यक्ति जीवन में भय,आशा,स्नेह और लोभ के वशीभूत भगवान को छोड़ कुदेवादि को पूजता है,पर सम्यकदृष्टि इन सबसे ऊपर उठकर अपने कर्मोदय को मानकर धर्म के द्वारा अपनी श्रद्धा को मजबूत करता है।जो दूसरों के गुणों को छिपाता है और उनके तिल बराबर दोष को भी बढा चढ़ा कर बताता है तथा स्वयं के दोषों को छिपाता है तथा अपने अल्प गुणों को बखान करता है,वह दोषों का ही कोष बनता है। गिरते हुए को गिराना या पुन: नहीं उठने देने यह कार्य मिथ्यादृष्टि ही कर सकता है।सधर्मी को संकट में देखकर भी उसकी सहायता नहीं करना और दूर से ही निकल जाने वाला कभी किसी के स्नेह -वात्सल्य का पात्र नहीं बन सकता है।आचार्य कहते है कि तुमसे धर्म की प्रभावना नहीं हो पाये कोई बात नहीं पर धर्म की अप्रभावना न हो इस बात का ध्यान रखना।जीवन में इन शंकादि आठ दोषों से बच जाते है, तो सम्यकदर्शन गुण में शुद्धि और वृद्धि दोनों होगी।सम्यकदर्शन मोक्ष सोपान का आधार है।सम्यकदर्शन शुद्ध बना रहे इसलिए अपने अन्दर आस्था, वैराग्य,दया और शान्त भावों को स्थान देना होगा।मंगलाचरण सुनिल सेठिया,दीप प्रज्जवन रिषभकुमार मोहिवाल कोटा,चित्र अनावरण राजेशकुमार श्रेयांसकुमार हरसोला डाबी,शास्त्र दान डाबी महिला मण्डल व चातुर्मास पत्रिका का विमोचन भगवतीलाल मोहिवाल बोराव,रिषभ कुमार मोहिवाल कोटा और सम्पूर्ण चातुर्मास कमेटी के सदस्यों ने व बाहर से पधारे हुए समाजजनों को सोभाग्य प्राप्त हुआ।इस अवसर पर सिंगोली के अलावा कोटा,डाबी, बोराव,धनगाँव,थडोद,झांतला सहित अन्य गांवों के समाजजन उपस्थित थे।

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