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दुःखों से मुक्ति का उपाय है प्रभु भक्ति व पूजा - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)। संसारी प्राणी दुःखों से घबराता है और सुख की कामना करता है परन्तु सारे कार्य दुःख प्राप्ति के ही करता है।दुःखों से मुक्ति का उपाय है प्रभु भक्ति एवं पूजा।भगवान ने स्वयं के कर्मों को नष्ट कर दिया है इसलिए वे धन्य हो गए और हमें धन्यता प्राप्ति का मार्ग बता गए।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षित व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज से दिक्षीत मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 2 अगस्त बुधवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि भगवान ने अपने अन्दर सुप्त पडी अनन्त शक्ति को जागृत कर परम सुख को प्राप्त किया है।मानव में भी वह अनन्त शक्ति है पर अपने प्रमाद के कारण वह उसे प्रकट नहीं कर पा रहा है।भगवान जानते देखते है परंतु उस पर प्रतिक्रिया नहीं करते है,मनुष्य जानने देखने के बाद राग-द्वेष रूप प्रतिक्रिया करता है,इस कारण से उसका संसार समाप्त नहीं हो रहा है।आचार्य कहते है कि जानो-देखो पर कूलों मत अर्थात् उसमें राग-द्वेष मत करो।भगवान मुक्ति रूपी स्त्री के स्वामी बन गए और वे अधोलोक, मध्यलोक और उर्ध्वलोक तीनों लोकों के ऊपर मुकुट के समान शोभायमान हो रहे है अर्थात भगवान तीनों के ऊपर भाग में स्थित सिद्धालय में अनन्त सुख का अनुभव कर रहे है।मनुष्य में भी उस अनन्त शक्ति प्राप्त करने की क्षमता है उसे वह स्वयं के पुरुषार्थ से प्राप्त कर सकता है।भगवान की भक्ति उस पुरुषार्थ का प्रारंभ है और भगवान सुख प्राप्ति में निमित्त मात्र है।भगवान ने मार्ग दिया,मार्ग पर कैसे चलना बता दिया और चलना व्यक्ति को स्वयं पड़ेगा तभी वह अपने मंजिल पर पहुँच पायेगा।इस दौरान मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने कहा कि वर्तमान में एकल परिवार की अवधारण अधिक प्रचलन में हो रही है और इस एकल परिवार के कारण ही व्यक्ति धर्म ध्यान आदि महत्वपूर्ण कार्यो से वंचित हो रहा है।पूर्व समय में संयुक्त परिवार होता था,सब मिलकर कार्य करते थे, किसी को कोई समस्या होती थी तो सब मिल बैठ कर उसका समाधान निकालते थे।धर्म ध्यान, तीर्थ यात्रा आदि पर व्यक्ति निश्चिन्त हो कर चला जाता था।परिवार के संस्कार बने रहते थे पर आज एकल परिवार से सारे रिश्ते समाप्त,रीति-रिवाज,संस्कार समाप्त हो रहे हैं जो आज भी संयुक्त परिवार में रहता है वह एकल परिवार की अपेक्षा कहीं अधिक सुख व शान्ति का अनुभव करता है।

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