सिंगोली(निखिल रजनाती)। जिस प्रकार सूर्य संसार के अंधकार को नष्टकर प्रकाश देता है उसी प्रकार भगवान भी पापों के अंधकार को दूरकर धर्म का प्रकाश करते हैं।भगवान ने स्वयं स्थिर पद प्राप्त कर लिया और भव्य जीवों को भी स्थिर पद प्राप्त करने का मार्ग बता दिया।संसारी प्राणी सांसारिक नश्वर पदों की प्राप्ति का निरन्तर प्रयत्न करता है।उन नश्वर पदों को प्राप्ति के लिए दर-दर भटकता है,दर-दर की ठोकरे खाता है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षित व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज से दीक्षित मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 3 अगस्त गुरुवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने बताया कि आचार्य ने कहा हैं कि सांसारिक नश्वर पद दूसरों को पददलित करके प्राप्त किया जाता है।नश्वर पद प्राप्ति के लिए व्यक्ति अपने सगे भाई को भी नहीं छोड़ता है।सांसारिक पद व्यवस्था के लिए होते हैं, जो उन पदों पर बैठता है,वे मालिक नहीं,सेवक के रूप में कार्य करे तो उन्नति का मार्ग खुल सकता है।वर्तमान के जनप्रतिनिधि यदि सेवक के रूप में पूरी निष्ठा के साथ काम करें तो भारत को पुनः सोने की चिडिया बनने में देर नहीं लगेगी परन्तु आज जनसेवक मालिक बन कर कार्य कर रहा है,इस कारण भारत आपेक्षित प्रगति नहीं कर पा रहा है।यदि पद पर बैठे व्यक्ति पद को अपना कर्तव्य मान कर कार्य करें तो वे पुन: उस पदको प्राप्त कर सकते है।वर्तमान में राजनेता और सामाजिक नेता पद पर बैठकर स्वयं को मालिक मानते है,इस कारण कलह - भ्रष्टाचार अपराध जन्म लेते हैं।भगवान ने स्थिर अनश्वर पद प्राप्त करने के लिए पथ बतलाया है पर सब उस पथ को छोड नश्वर सांसारिक पद की ओर दौड लगा रहे हैं।इस दौरान मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने कहा कि संसार में प्राणियों का हित करना ही सत्य है।परोपकार समस्त प्राणियों के हित को साधने वाला है।प्राणियों का अस्तित्व ही सत् है और सत् ही सत्य कहलाता है।आचार्यो ने कहा है कि यदि एक के अहित के कारण हजारों का हित होता है तो पहले परहित करना ही श्रेष्ठ है। ऋषियों ने पुराण ग्रंथों में कहा है कि परहित में हमारा हित भी निहित है।स्वहित के लिए अधिक पुरुषार्थ करने की आवश्यकता ही नहीं है क्योंकि परात्मा का हित ही सत्य है।