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शिष्यत्व आए बिना गुरुता की प्राप्ति संभव नहीं है - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(माधवीराजे)।संसार में सही मार्ग बताने वाले गुरु ही होते हैं इसलिए गुरु का पद सबसे बड़ा है।गुरु की महिमा अपार है उसका वर्णन शब्दों से नहीं किया जा सकता है।गुरु ही माता,गुरु ही पिता, गुरु ही बंधु और गुरु ही सच्चा मित्र है।गुरु बनने के लिए जीवन में लघुता लानी पड़ती है,अर्थात् विनम्र होना पडता है।आज गुरु बनने की होड़ सी लगी है।कोई भी शिष्यत्व को  स्वीकारना ही नहीं चाहता है।शिष्यत्व आए बिना गुरुता की प्राप्ति संभव नहीं है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 1 नवंबर बुधवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि हमारे आचार्यों ने गुरु के रुप में आचार्य,उपाध्याय और साधु को स्वीकार किया है।आचार्य और उपाध्याय पद व्यवस्था की अपेक्षा है इनके बिना भी साधक अपनी साधना की उच्चता को प्राप्त कर सकता है।मुक्ति की साधना में आचार्य और उपाध्याय पद साधक नहीं बाधक ही होते हैं।आचार्य कहते हैं कि पद के लालसा के कारण साधक अपनी साधना का त्याग कर देता है तो यह उसके लिए पतन का कारण है।आचार्यों ने कहा है कि पद प्राप्त करने की इच्छा है तो अन्य आचार्य के पास जाकर पद प्राप्त कर स्वयं गुरु कहलवाते हैं।पद की प्यास  इतनी लगी है कि हर कोई बादशाह बनना चाहता है प्रजा की इच्छा कोई नहीं करता है।

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