सिंगोली(माधवीराजे)।तीर्थंकर सबसे अधिक पुण्यशाली होते हैं,उनका शरीर 108 लक्षण और 900 तिलादि व्यंजन कुल 1008 शारीरिक शुभ लक्ष्णों से युक्त होता है।अन्य महापुरुषों में कुछ ही लक्षण पाए जाते हैं पूरे नहीं । उन लक्षणों को आधार बनाकर भगवान की भिन्न-भिन्न नामों से पूजा आराधना की जाती है।तीर्थंकर भगवान् की पूजा के द्वारा निधत्त निकाचित्त कर्म का भी अन्त हो जाता है।श्रावक पूजन के आधार बनाकर सम्यग्दर्शन के योग्य भाव बना लेता है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षित व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 3 नवंबर शुक्रवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि आज शान्तिनाथ की स्तुति के माध्यम से पूर्व के दिनों हमारे द्वारा किये गए गलत को समाप्त कर चारित्र की धारणा बना लो।भगवान् श्री शान्तिनाथ से आज अनवरत ज्ञान की गंगा चली आ रही है वआर्य खण्ड के भरत क्षेत्र में तीर्थोंकरों के अभाव में ही धर्म प्रभावना निरन्तर जारी है इसलिए शान्ति पाठ विसर्जन करके विश्व की शान्ति की कामना करते है। मन में शान्ति तो जग में शांति होती है।