सिंगोली(माधवीराजे)।सिंगोली नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 6 नवंबर सोमवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि राजा बलवान हो तथा साथ में धर्मात्मा हो तभी वह सभी प्रजा का हित सोच सकता है।उसे धर्म सहिष्णु भी होना चाहिए तभी राज्य में, देश में शान्ति और सुख का संचार हो सकता है। प्राचीनकाल में प्रजा को राजा चुनने का अधिकार नहीं था परन्तु अपने राज्य द्वारा प्रदत्त अधिकारों के प्रति जागरुकता थी। राजा भी प्रजा को अपनी संतान की तरह मानकर उसका लालन पालन करता था।प्रजा भी राजा के एक संकेत पर अपने प्राणों की आहूति देने को तत्पर रहती थी। वर्तमान में प्रजा को राजा चुनने का अधिकार प्राप्त है और उसे सही शासन नहीं करने पर हटाने का भी अधिकार है परन्तु आधे से अधिक जनता इस अधिकार का प्रयोग नहीं करती है और चुनकर आए जनप्रतिनिधि को ठीक नहीं है ऐसा कहती है।जब संविधान ने प्रत्येक वयस्यक को चुनने का अधिकार दिया है तो उसका प्रयोग उसे करना चाहिए और योग्य व्यक्ति को अपना शासन प्रतिनिधि बनाकर शासन को शक्ति प्रदान करना चाहिए।राजा यदि बलवान हो धर्मात्मा नहीं हो तो वह स्वयं प्रजा पर अत्याचार-अन्याय करने लग जाए इसलिए आचार्य कहते हैं कि राजनीति में धर्म का समावेश होना चाहिए न कि धर्म में राजनीति करना चाहिए।धर्म तो द्वेष को दूर कर शान्ति की प्राप्ति करा सकता है।