सिंगोली(माधवीराजे)।संसार में हर प्राणी दुःखी है चाहे वह मनुष्य हो या देव हो अथवा पशु हो या नरक में रहने वाला हो।दुःख से सभी छूटना चाहते हैं परन्तु कुछ ही लोग प्रयत्न करते हैं और जो प्रयत्न करते हैं उनमें से भी कुछ एक ही सही दिशा में प्रयत्न करते हैं।सही दिशा में भी प्रयत्न करने पर भी जो अपनी क्षमता का पूर्व प्रयोग नहीं करता है उसे भी पूर्ण रूप से दुःखों से छूटकारा नहीं मिलता है।संसार में दुःखों का कारण क्या है इस पर विचार करने की बजाय व्यक्ति अपने दुःखों के लिए दूसरों पर आरोप-प्रत्यारोप करता है।संसारी प्राणी का दुःखों से छूटने का वर्तमान पुरुषार्थ उस व्यक्ति की तरह है जो वृक्ष के पत्ते,फूल और फल के खराब होने पर उन्हें तोड़ कर फेंक देता है या उन पर दवाई आदि का प्रयोग करता है।वृक्ष के मूल में आए विकार की ओर नहीं देखता है।दुःखों के मूल कारण को जाने बिना बाहरी समस्याओं को दुःख का कारण कहना ठीक नहीं है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 15 नवंबर बुधवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि दुःख का मूल अन्दर बैठे राग-द्वेष-मोह क्रोध, काम, मत्सर मदादि कषाय और पाप के परिणाम है।उन पर कोई प्रहार नहीं करता है।मात्र बाहरी कारणों को दूर करने का प्रयत्न निरन्तर करते हैं।प्रभु की भक्ति-आराधना से दुःखों के इस मूल जड पर प्रहार किया जाता है जो उसे नष्टकर शाश्वत सुख की प्राप्ति करने का मार्ग प्रशस्त करती हैं।भक्ति दुःखों से छूटने का सशक्त और सरल मार्ग है।इस अवसर पर बड़ी संख्या में समाजजन उपस्थित थे।