सिंगोली(माधवीराजे)।जब व्यक्ति के परिणामों में निर्मलता आ जाती है तो कषायों की मन्दता हो जाती है तब व्यक्ति स्वतः ही झुकता चला जाता है।वह विनय गुण से सम्पन्न हो जाता है।आचार्यों ने विनय शब्द की व्याख्या करते हुए कहा है कि विशिष्ट प्रति आत्मान नयति विनय अर्थात् जो आत्मा को आत्मा की विशेषता की ओर ले जाए वह विनय कहलाती है। विनय सम्पन्न व्यक्ति का जीवन सदा सद्गुणों से युक्त रहता है और ऊँचा उठ जाता है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 23 नवंबर गुरुवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि पहाड़ पर चढना हो तो झुकना पड़ता है।अकड़कर ऊँचाई की प्राप्ति नहीं हो सकती।इन्द्रियाँ मन को बहकाती है और मन उन्हें प्रेरित करता है।मन की उद्दण्डता को और चञ्चलता के कारण ही संसार परिभ्रमण चल रहा है।लौकिक विनय संसार को बढाने वाली तो ये आध्यामिक विनय संसार का अन्त कराने वाली होती है।खदान से रत्न निकालने के लिए खोदना पड़ता है और खोदने हेतु झुकना पड़ता है उसी प्रकार आत्मा के गुणों की रत्न राशि को प्राप्त करना है तो विनय को जागृत करना होगा।