logo

आचार्य पदारोहण व अवतरण दिवस बड़े धूमधाम के साथ मनाया गया

सिंगोली(माधवीराजे)।सिंगोली नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज व मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज के सानिध्य में 29 नवंबर बुधवार को प्रातःकाल आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का 52 वां आचार्य पदारोहण दिवस व समाजजनों द्वारा मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज का 46 वां अवतरण दिवस बड़े भक्तिभाव के साथ मनाया गया।मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि आज का दिन दिगम्बर श्रमण परम्परा का स्वर्ण और ऐतिहासिक दिन है।आज प पू चारित्र चक्रवर्ती प्रथमाचार्य श्री शान्तिसागर जी के बाद एक युवाचार्य मिला जिन्होंने दिगम्बर श्रमण परम्परा को युवा वर्ग के लिए सरल कर दिया।परमपूज्य आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने अपने युवा शिष्य मुनि श्री विद्यासागर जी को अपना आचार्य पद दिया।साथ ही उन्हें अपना निर्यापक आचार्य मानकर उनका शिष्यत्व स्वीकार किया।ऐसी अद्‌भूत और अनुठी घटनाएँ विरले ही घटित होती है। इससे पूर्व आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज के साथ घटित हुई जब उनके दीक्षा गुरु मुनि श्री देवेन्द्र कीर्ति जी ने उनसे प्रायश्चित्त मांगकर पुन: व्रतों को मांगा था।आचार्य श्री विद्या सागर जी ने एक नये युग का आरंभ किया था।उन्होंने दीक्षा ली थी तब तक उनकी उम्र के युवाओं की दीक्षा की संख्या नगण्य थी और वे जब आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए तो उस समय सबसे युवा आचार्य हुए।उन्होंने आचार्य पद को स्वीकार कर आचार्य पद की प्रतिष्ठा में चार चाँद लगा दिए।आज का दिन हम सबके लिए बहुत ही हर्ष मनाने का है क्योंकि वर्तमान में युवा पीढी में जो धर्म की प्रभावना दिख रही है और जो युवावर्ग संयम की ओर बढ रहा है वह सब आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की ही देन है।इस पावन अवसर पर यही मंगल भावना भाते हैं कि गुरुवर दीर्घायु और दिगम्बर श्रमण परम्परा की धर्म ध्वजा को  दिग्दिगन्त तक फहराते रहे।इस दौरान मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने कहा कि श्रावकों के कर्तव्यों में देवपूजा और दान मुख्य कहे गए है।देव पूजा निःस्वार्थ भाव से की जाए तो कर्म निर्जरा तथा सातिशय पुण्य का कारण बनती है।दान पूजा के बिना गृहस्थ श्रावक संज्ञा को प्राप्त नहीं होता है।भगवान् की पूजा उनके समान गुणों की प्राप्ति हेतु की जाती है।भगवान् के स्वरूप को अपने हृदय में विराजमान करना ही सही आव्हान है।पूजा में ठोना पूजा के संकल्प का प्रतीक है।जल चढ़ाकर अन्तर राग द्वेष रूपी गंदगी को साफ करने का संकल्प करते है।क्षत विक्षत पद की अपेक्षा शाश्वत पद की प्राप्ति की भावना से अक्षत चढाते हैं। भगवान की पूजा सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाली होती है। आकांक्षा से रहित होकर भगवान की पूजा करने से अचिन्त्य फल की प्राप्ति होती है।वही मुनिश्री ससंघ के सानिध्य में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के 52 वें आचार्य पदारोहण दिवस पर प्रातःकाल मन्दिर जी में आचार्य श्री की संगीतमय पुजन विधान किया गया व मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज का 46 वां अवतरण दिवस पर समाजजनों द्वारा प्रातः काल मुनिश्री का पाद प्रक्षालन  आरती पुजन विधान कर बड़े धूमधाम के साथ मनाया गया।इस अवसर पर बड़ी संख्या में समाजजन उपस्थित थे।

Top