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भक्तिरुपी गंगा में स्नान से पाप अवश्य धुल जाते हैं - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(माधवीराजे)।विचारों में सुदृढ निरन्तर चिन्तन से आती है और विचारों की सार्थकता आचरण में ढलने से होती है। भावों की विशुद्धिपूर्वक पूज्य पुरुषों के गुणों के प्रति अनुराग होता है वही भक्ति कहलाती है। गंगा नदी में स्नान से पाप धुले या न धुले पर भक्ति रूपी गंगा में स्नान से पाप अवश्य ही धुल जाते है।भक्ति भगवान से जुडने का एक सशस्त और पवित्र साधन है और यही भक्ति भगवत्सत्ता के प्राप्ति का भी माध्यम है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 3 दिसंबर रविवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि भगवान् की भक्ति में तीन विशेष बातें होनी चाहिए।पहली भगवान् के रूप का दर्शन भगवान् बाह्य में बालकवत् निर्विकार सुन्दर यथाजात रूपी में है तो अन्तरंग में भी कर्मो के विकार से रहित चैतन्य स्वरूपी है।दूसरी विशेष बात दर्शन से उपदेश भगवान वीतरागी है वे उपदेश दे रहे है कि तुम भी संसार का,वित्त का राग छोड़कर,राग रहित वीतराग दशा को प्राप्त करो।नासाग दृष्टि के द्वारा संदेश दे रहे है कि अपने अन्तरंग में झांको पर की ओर मत देखो।हाथ पर हाथ रख कर बैठे है और कह रहे है कि संसार के कार्यों को छोडकर आत्मा की ओर आओ।भगवान की भक्ति पतित को भी पावन बना देती है।भगवान की भक्ति से मन को तृप्ति और सहारा मिलता है आत्मविश्वास बढता है सहनशक्ति बढ़ती है।इस दौरान ऐलक श्री क्षीरसागर जी महाराज ने कहा कि भगवान की भक्ति निष्काम होनी चाहिए।निष्काम भक्ति के द्वारा अचिन्त्य फल की प्राप्ति होती है।भक्त भगवान से कहता है मैं आपको चाहता हूँ आपसे कुछ नहीं चाहता हूँ।भक्ति से मुक्ति मिल सकती है पर संसार का सुख मांगना घाटे का सौदा है। भक्ति के प्रभाव से भक्त की दुर्गति नहीं होती है इसलिए आप जब भी भगवान की भक्ति करने जाए तो एक को ओर साथ ले जाए। पहले राजा आदि भगवान के दर्शन भक्ति करने जाते थे तो सारे नगर की जनता को साथ चलने के लिए कहते थे और स्वयं पूरे परिवार के साथ जाते थे। सामुहिक भक्ति के द्वारा समाज, देश,परिवार की सुख-शान्ति और समृद्धि का फल प्राप्त करते थे। आज भी हम ऐसा कर लें तो सभी के लिए सुख की प्राप्ति कर सकते हैं।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।

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