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जहाँ समर्पण होता है वहाँ स्वर्ग होता है - मुनिश्री दर्शित सागर

सिंगोली(माधवीराजे)।मानव जीवन में तप ही शुद्धि के लिए एक मात्र उपाय है।बहिरंग तप मात्र दिखावा नहीं है उसके बिना अंतरंग तप की सिद्धि नहीं हो सकती है।सोना तपाने पर शुद्ध होता है उसी प्रकार तप के द्वारा आत्मा शुद्ध होता है।जीवन को धन्य करने और कर्म से मुक्त करने के लिए धर्म के मर्म को समझना होगा।धर्माराधन के बिना जीवन सफल नहीं हो सकता है। सफलता के लिए समर्पण की आवश्यकता होती है।जहाँ समर्पण होता है वहाँ स्वर्ग होता है और जहाँ तर्क होता है वहाँ नरक होता है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने 4 दिसंबर सोमवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि व्यक्ति को अपनी कथनी और करनी एक रखना चाहिए। पहले स्वयं बदलो,दूसरों को बदलना का प्रयास मत करो दूसरों को बदलने में समय बर्बाद मत करो।यदि समय बर्बाद करते हैं तो समय आपको बर्बाद कर देगा। जिस समय जो काम होता है या कर लेते है वही उस काम के लिए सही समय है।सलाह की सौ अच्छी बातों से अनुभव की एक ठोकर महत्वपूर्ण होती है।सफलता के शिखर पर पहुंचने के लिए बदला नहीं बदलाव लाने की आवश्यकता होती है।काम करो बुद्धि से जीवन जीओ शुद्धि से।लक्ष्य प्राप्ति के लिए मन की स्थिरताआवश्यक है।अहंकार प्रगति में बाधक होता है।इस दौरान मुनिश्री सुप्रभसागर जी  महाराज ने कहा कि संसारी प्राणी भौतिक नश्वर सम्पदा के संग्रह में लगा रहता है उसका ध्यान अविनश्वर आत्मिक सम्पदा के संग्रह की ओर नहीं जाता है। पूज्य पुरुषों की भक्ति उस आत्मिक सम्पदा की प्राप्ति का एक उपाय है।अरिहंत भगवान सदैव नहीं रहते हैं।उनके अभाव में आचार्य परमेष्ठी सन्मार्ग दिखाने वाले और उस पर चलाने वाले होते हैं।संचालक यदि कहे कि मैं जो कहता हूँ, वह करो तो वह सफल संचालक नहीं बन सकता है।जो मैं जैसा करता हूँ वैसा करो कहता है वह सफल संचालक माना जाता है।आचार्य परेष्ठी ऐसे ही संचाल‌क है जो स्वयं पञ्चाचार का पालन करने है और शिष्यों को पालन करवाते है।आचार्य माता-पिता दोनों की भूमिका निभाते हैं।शिष्यों पर माता के समान स्नेह की वर्षा करते हैं तो पिता के समान अनुशासन का दण्डा लेकर बैठते है।आचार्य परमेष्ठी की विशेषता बताते हुए कहा गया है कि जिसका मूल सम्यग्दर्शन,तना सम्यग्ज्ञान, शाखाएँ सम्यकचारित्र है जिस पर मुनियों के समूह रूपी पक्षी निवास करते है ऐसे आचार्य रूपी महावृक्ष को मैं नमस्कार करता हूँ।

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