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एकाग्रता से की गई भक्ति ही शक्ति प्रदान करती है - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(माधवीराजे)।भक्ति में दो बातें मुख्य है एक तो भीतरी एकाग्रता और दूसरी निर्लोभ वृत्ति।भीतरी एकाग्रता से की गई भक्ति ही शक्ति प्रदान करती है। यह बात मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 5 दिसंबर मंगलवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि जिससे भक्त संकटों का सामना कर सकता है और कष्टों से छूट सकता हैं।निर्लोभ वृत्ति से अचिन्त्य फल की प्राप्ति होती हैं।भक्ति में एकाग्रता ऐसी हो कि आराध्य के अलावा और कोई न दिखे,मन के सारे विकार शान्त हो जाएँ।तीर्थंकर प्रकृति के आसव हेतु ऐसी ही भक्ति की आवश्यकता होती है।भक्ति भावना के अलगे क्रम में आचार्यों ने बहु-श्रुत भक्ति भावना कही है। बहुश्चत भक्ति अर्थान जो श्रुत के पारगामी है,ऐसे उपाध्याय परमेष्ठी की स्तुति वन्दना करना।उपाध्याय परमेष्ठी पठन-पाठन करने वाले होते हैं।वे शिष्यों को आगम का ज्ञान देकर अज्ञान अंधकार को दूर करते हैं।वे शिष्यों के हृदय में ज्ञान का दीपक जला देते हैं जो आगे जाकर केवलज्ञान रुपी प्रखर प्रकाश पुंज बन जाता है।उपाध्याय परमेष्ठी सदैव परोपकार में लगे रहते हैं वे राग-द्वेष,घटे, वीतरागता,प्राणी मात्र में प्रेम भावना उत्पन्न हो।इस दौरान ऐलक श्री क्षीरसागर जी महाराज ने कहा कि आचार्य सोमदेव सूरि ने मन्दिर में छह कार्य करने की प्रेरणा श्रावकों को दी है। अभिषेक,पूजन,स्वाध्याय स्तोत्र मंत्र पाठ जाप और ध्यान।बिना अभिषेक के पूजन नहीं करना चाहिए।श्रावकों के षडावश्यक में भी पूजन पहले रखा है परन्तु पूजन अभिषेक पूर्वक ही की जाती है।कुछ ने मात्र स्वाध्याय को पकड़ा तो कुछ ने मात्र अभिषेक पूजन को पकड़ा परन्तु आचार्य कहते हैं कि श्रावकों को दोनों ही कार्य प्रतिदिन करना चाहिए।नीति ग्रन्थ में आचार्यों ने लिखा है कि जो चौबीसी भगवान् की पूजा नहीं करता वह उन तीर्थंकरो के उपकारों को विस्मृत कर रहा है तथा जो प्रतिदिन स्वाध्याय नहीं करता है वह आदि ब्रह्मा ऋषभदेव का श्रेणी है।स्वाध्याय के बिना की गई क्रिया का अर्थभान नहीं होता है।स्वाध्याय नहीं करने से धर्म से भी दूर हो जाते हैं।मन्दिर से वापस आने पर भगवान से कहना चाहिए भूयात् पुनः दर्शन अर्थात आपके पुनः दर्शन हो।ऐलक श्री क्षीरसागर जी महाराज का मंगलवार को दोपहर में समायिक के उपरान्त मंगल विहार बोराव की तरफ हुआ।इस अवसर पर बड़ी संख्या में समाजजन उपस्थित थे।

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