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कषाय के संस्कार गहरे हैं इसलिए उन्हें मिटाने में निरन्तर पुरुषार्थ करना होगा - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(माधवीराजे)।प्रतिदिन एक ही एक बात को दोहराओ तो उसका प्रभाव वचन और काय की क्रिया पर भी पड़ता है।अच्छी भावना भाने से कषाय की तीव्रता और उसकी समयावधि में कमी आती है।कषाय के संस्कार गहरे हैं इसलिए उन्हें मिटाने में थोडी देर लगेगी निरन्तर पुरुषार्थ करना होगा।अच्छी भावनाओं के चिन्तन की कड़ी में अब बात करेंगे- मार्ग प्रभावना भावना की।मार्ग किसे कहे जिसकी प्रभावना करना है।यह बात नगर में विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 8 दिसंबर शुक्रवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने बताया कि आचार्यों ने कहा है-महाजना: येन गता सः पथा अर्थात जिसके द्वारा महान लोग गए है वही मार्ग है।तीर्थंकर,गणधर,आचार्य, उपाध्याय जिस मार्ग पर चले या गए वही सही पथ है।उस मार्ग की महिमा और महानता का अनुभव स्वयं करें और दूसरों को अनुभव करवाना ही मार्ग प्रभावना भावना है।दान,तीर्थयात्रा,रथोत्सव,विधान तथा पञ्च कल्याण तथा पूजा विधान का वृहद आयोजन से सब मार्ग प्रभावना के साधन है।यह बाहरी मार्ग प्रभावना से कई व्यक्ति श्रद्धा बना सकते है पर स्वयं के लिए लाभ मिले तब ही अन्तरंग प्रभावना हो सकती है।जब तक मार्ग पर चलने वालों की  श्रद्धा नहीं तब तक मोह मार्ग नहीं छूटने वाला है।अन्तरंग में मार्ग को प्रभावना हुए बिना बाह्म की  प्रभावना व्यर्थ है।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।

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