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शिव-पार्वती का विवाह का प्रसंग सुनकर भाव विभोर हुए श्रद्धालु

सिंगोली(माधवीराजे)।यह संसार भगवान का एक सुंदर बगीचा है।यहां चौरासी लाख योनियों के रूप में भिन्न- भिन्न प्रकार के फूल खिले हुए हैं।जब-जब कोई अपने गलत कर्मो द्वारा इस संसार रूपी भगवान के बगीचे को नुकसान पहुंचाने की चेष्टा करता है तब-तब भगवान इस धरा धाम पर अवतार लेकर सजनों का उद्धार और दुर्जनों का संघार किया करते हैं।यह उपदेश सुप्रसिद्ध कथावाचक पंडित राजेश राजोरा महाराज ने 8 जनवरी सोमवार को दिये।वे सिंगोली तहसील के ग्राम अथवां खुर्द स्थित राम जानकी सराय प्रांगण में आयोजित सात दिवसीय संगीतमय श्रीमदभागवत कथा ज्ञान गंगा यज्ञ के तीसरे दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं को सम्बोधित कर रहे थे।उन्होंने राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री सती एवं शिव पार्वती विवाह का विस्तार से वर्णन करते हुए श्रद्धालुओं का मन मोह लिया।जहाँ-जहाँ सती के अंग गिरे वह स्थान शक्तिपीठ कहलाते हैं।कथावाचक पंडित राजेश राजोरा ने कथा के दौरान बताया कि दक्ष प्रजापति के पुत्री के रूप में देवी दुर्गा ने सती के रूप में जन्म लिया था।इनका विवाह भगवान भोलेनाथ के साथ हुआ था।एक बार ऋषियों ने यज्ञ का आयोजन किया उसमें राजा दक्ष आए जिन्हें देखकर सभी देवता खड़े हो गए लेकिन भगवान शिव नहीं खड़े हुए।भगवान शिव महाराज दक्ष के दामाद थे,यह देखकर राजा दक्ष क्रोधित हो गए और अपने अपमान का बदला लेने की ठानी।राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया इसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया लेकिन शिवजी व देवी सती को नहीं बुलाया।नारदजी माता सती के पास पहुंचे और यज्ञ का हाल बताया।देवी सती ने भगवान शिव से यज्ञ में चलने की जिद की लेकिन भगवान शिव ने कहा कि देवी बिना बुलाए कहीं नहीं जाना चाहिए बावजूद इसके देवी सती अपने पिता के यज्ञ में चली गईं।पिता दक्ष से भगवान शिव को आमंत्रित न करने का कारण पूछा तो वे क्रोधित हो गए और शिव का अपमान कर दिया इससे देवी सती ने यज्ञ के हवन कुंड में कूदकर प्राणों की आहुति दे दी। यह सुनते ही शिवजी क्रोधित हो गए और उनका तीसरा नेत्र खुल गया इससे ब्रह्मांड में प्रलय मच गई।भगवान शिव ने घूम-घूम करके तांडव शुरू कर दिया इससे प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लगी।भगवान विष्णु अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंड खंड कर धरती पर गिराने लगे।जिन-जिन स्थानों पर माता सती के अंग गिरे उन्हें शक्तिपीठ कहा गया है।इस प्रकार 51 स्थानों में माता के शक्तिपीठों का निर्माण हुआ।अगले जन्म में सती ने राजा हिमालय के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया।घोर तपस्या करके भगवान शिव को पुनः पति के रूप में प्राप्त किया।पंडित श्री राजोराजी महाराज ने शिव-पार्वती विवाह का प्रसंग सुनाया तो प्रसंग सुनकर श्रद्धालु भाव विभोर हो गए।इस दौरान शिव-पार्वती विवाह की झांकी भी सजाई गई।कथा व्यास ने शिव विवाह का वर्णन करते हुए कहा कि पर्वतराज हिमालय की घोर तपस्या के बाद माता जगदंबा प्रकट हुईं और उन्हें बेटी के रूप में उनके घर में अवतरित होने का वरदान दिया इसके बाद माता पार्वती हिमालय के घर अवतरित हुईं।बेटी के बड़ी होने पर पर्वतराज को उसकी शादी की चिंता सताने लगी कहा कि माता पार्वती बचपन से ही बाबा भोलेनाथ की अनन्य भक्त थी।एक दिन पर्वतराज के घर महर्षि नारद पधारे और उन्होंने भगवान भोलेनाथ के साथ पार्वती के विवाह का संयोग बताया।उन्होंने कहा कि नंदी पर सवार भोलेनाथ जब भूत-पिशाचों के साथ बारात लेकर पहुंचे तो उसे देखकर पर्वतराज और उनके परिजन अचंभित हो गए लेकिन माता पार्वती ने खुशी से भोलेनाथ को पति के रूप में स्वीकार किया।

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