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मानव और मानवता का सत्कार है दीक्षा

सिंगोली(निखिल रजनाती)।जैन संस्कृति श्रमण संस्कृति कहलाती है।श्रमण का अर्थ होता है साधु।श्रमण या साधु शब्द के अन्तर्गत श्रमणियाँ अथवा साध्वियाँ भी सम्मिलित मानी जाती हैं।तीर्थकर अपनी देशना में सर्वप्रथम श्रुत धर्म और चारित्र धर्म का प्रतिपादन करते हैं।चारित्र धर्म दो प्रकार का होता है-आगार धर्म और अनगार धर्म। आगार धर्म के अन्तर्गत श्रावक (सदहस्थ) जीवन और अनगार धर्म के अन्तर्गत भ्रमण (संत) जीवन की साधना की जाती है।मनुष्य जीवन का परम लक्ष्य संसार परिभ्रमण को समाप्त करके मोक्ष प्राप्त करना है।इस परम लक्ष्य की शीघ्र प्राप्ति सुनिश्चित करने हेतु श्रमण जीवन को श्रेष्ठतर बताया गया है श्रमण जीवन में एक ओर आत्मकल्याण का अनुश्रर लक्ष्य होता है,दूसरी ओर श्रमण जीवन के माध्यम से समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना और आध्यात्मिक वातावरण का निर्माण होता है।ऐसे वन्दनीय श्रमण जीवन की शुरुआत दीक्षा से होती है।जैन धर्म में दीक्षा को एक बहुत बड़ा सत्संकल्प तथा संयम में पराक्रम माना जाता है।प्रबल वैराग्यभाव साधक के अन्तर्मन में रासायनिक परिवर्तन का निमिश्र बनता है।वेष परिवर्तन के साथ जीवन का रूपान्तरण और नवीन जीवन का शुभारंभ दीक्षा है।आजीवन संयममय जीवन का संकल्प दीक्षा है, इसलिए दीक्षा ग्रहण करने को संयम ग्रहण करना भी कहा जाता है।उनराध्ययन सूत्र में कहा गया है कि लाखों का दान करने की अपेक्षा संयम-ग्रहण अधिक श्रेष्ठ है।इस कथन से संयम की अचिंत्य महिमा का पता चलता है।वस्तुतः संयम के माध्यम से साधक अनन्त दान और अनन्त दया करता है जिसका आकलन साधारण बुद्धि से प्रायः संभव नहीं हो पाता है।संयम के महत्व के कारण ही श्रावक (गृहस्थ) के तीन मनोरथों में दूसरा मनोरथ दीक्षा की भावना भी है।दीक्षा एक अखण्ड ज्योतिर्मय अन्तर्यात्रा है, अन्तर्मुखी साधना है।दीक्षा में साधक असत्य से सत्य की ओर,नश्वरता से अमरत्व की ओर,अंधकार से प्रकाश की ओर तथा विषमता से समता की ओर अग्रसर होता है।सम्यक् ज्ञान के सद्भाव और अज्ञान के अभाव का नाम दीक्षा है।दीक्षा में साधक अपने आप पर शासन करता है।तप-त्याग और धर्म-ध्यान के विश्वविद्यालय में प्रवेश का नाम दीक्षा है।आत्म-साधना के चरम सोपान तक पहुँचाने की साधना का नाम दीक्षा है।दीक्षा में साधक अशुभ का बहिष्कार करता है,शुभ का सत्कार करता है और शुद्ध की ओर अग्रसर होता है।इसी दीक्षा के महापथ पर महामना मुमुक्ष श्री राहुल जी रणावत बढ़ रहे हैं।आपने बूढ़ा (कवींद्र नगर) के इतिहास में एक स्वर्णिम पृष्ठ जोड़ दिया है।आपके दादी-दादा श्रीमती निर्मलाबाईजी व श्री सुजानमलजी, माता-पिता श्रीमती सुनिता व अशोककुमार रणावत सहित समस्त रणावत कुटुम्ब के लिए यह अत्यंत गर्व और हर्ष का विषय है कि एक कुलदीपक ने समाज व संसार को उजाला बांटने की ठानी है।आपकी दीक्षा 21फरवरी को गुजरात के अयोध्यापुरम तीर्थ पर होना निश्चित हुई है।बंधु बेलड़ी आचार्य श्री की निश्रा में मुमुक्षु राहुल की दीक्षा संपन्न होगी।इसी क्रम में मुमुक्षु राहुल की विदाई के कार्यक्रम सहित वर्षीदान का वरघोड़ा व अन्य कार्यक्रम का दो दिवसीय आयोजन बूढ़ा में सोमवार व मंगलवार को आयोजित किया गया है।

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