नीमच(माधवीराजे।लगभग डेढ़ हजार साल पहले कर्बला के मैदान में निहत्थे और मासूम लोगों पर उसे वक्त के जालिम बादशाह ने जो घटना घटित की वहां दुनिया का सबसे बड़ा और पहला आतंकवाद है उसमें जालिम बादशाह मोर्चा जीतकर भी जंग हार गया और जुल्म बेनकाब हो गया और इंसानियत जीत गई इसलिए यजीदियत मर गई हुसैनीअत अमर हो गई और यहाँ अशरा दुनिया के लिए एक नमूना है जिसमें पूरी दुनिया इस बात को स्वीकार करती है।ये उदगार हैं अंजुमन मिल्लत इस्लाम के जनरल सेक्रेटरी वह पूर्व पार्षद हारून रशीद कुरेशी का कहना है।इस्लाम में बहुत सारी जंग हुई है मगर उसका स्वरूप दूसरा था कर्बला का स्वरूप यहां था कि धोखे से बुलाकर निहात्थे मासूम इमाम हुसैन के लश्कर को उस वक्त की हुकूमत ने जुल्म के साथ शहीद किया गया और इस अपराध में पूरी हुकूमत शामिल थी।जालिम बादशाह हजरत इमाम हुसैन को अपनी बात मनवाना चाहता था जो बे उसूली थी,हजरत इमाम हुसैन ने उसे बात को मानने से इनकार कर किया और अपने नाना के दिन के बचाने स्वयं खुद की और अपने परिवार की जिसमें मासूम दूध पीते बच्चे महिलाएं और अपने नजदीक लोगों की शहादत पेश की मगर हाकिमे वक्त के सामने झुकना पसंद नहीं किया।श्री कुरैशी ने कहा है अब तो बहुत सी दुनिया भर में बहुत सी हुकूमत यजीदी राह पर चलकर इंसानियत को शर्मसार कर रही है।आतंकवाद फैला रही है इसकी शुरुआत कर्बला से हुई जिसका सिलसिला आज तक जारी है बहुत सी हुकूमत अपनी बातें मनवाने के लिए इसी तरह का कार्य करती है और इंसानियत पर जुल्म ढहा रही है।श्री कुरैशी ने कहा है कि आज दुनिया में जो ओरिजिनल इस्लाम जो शेष हजरत इमाम हुसैन की कुर्बानी का नतीजा उन्होंने सिर्फ इस्लाम का झंडा को बुलंद नहीं किया बल्कि सुबह कयामत तक की इंसानियत लिए यह नमूना पेश किया है कि इंसानियत जिंदा रहेगी उसूलों पर समझौता करके कुछ लोगों की हुकूमत चल सकती है मगर इंसानियत जिंदा नहीं रह सकती।श्री कुरैशी के अनुसार एक बड़ी बात कही है कि हजरत इमाम हुसैन को दुनिया में वहां लोग भी मानते हैं जो अल्लाह को नहीं मानते जिसका अर्थ यह नहीं कि हजरत हुसैन का मर्तबा अल्लाह से बड़ा है वास्तविकता यह है कि हज़रत इमाम हुसैन आस्था सभी वर्गों को है और यहां जानते हैं कि यहाँ मासूम है और उन पर जुल्म हुआ है जिसे जुल्म किया वह जालिम बादशाह था यही बात है कि आज तक किसी ने अपने बच्चों का नाम यजीद नहीं रखा।