सता रही है भविष्य की सुरक्षा
सिंगोली(निखिल रजनाती)।शासकीय कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद दी जाने वाली पुरानी पद्धति की पेंशन केन्द्र सरकार द्वारा बन्द किए जाने के बाद से ही केवल मध्यप्रदेश में ही नहीं बल्कि देश के लगभग प्रत्येक भाग के सरकारी महकमों में रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार बढ़ने लगे हैं क्योंकि कर्मचारियों को अपने और अपने परिवार के भविष्य की सुरक्षा सता रही है।आमतौर पर केन्द्र एवं राज्य सरकार की लगभग सभी योजनाओं को मैदानी स्तर पर क्रियान्वित करने वाले कर्मचारियों की पुरानी पद्धति से मिलने वाली पेंशन बन्द किए जाने के कारण अभी से अपने और अपने परिवार की भविष्य की सुरक्षा को लेकर चिंतित हो रहे कई कर्मचारियों ने गलत तरीके से काम को प्रोत्साहित करने और इनसे कमाई करने के तरीके इजाद कर लिए हैं जिसके चलते इन दिनों सब तरफ रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार का बोलबाला हो गया है जबकि विधायक एवं सांसद चुने जाने वाले निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को आज भी पुरानी पेंशन ही दी जा रही है चाहे वे एक दिन के लिए ही अपने पद पर रहे हों।यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि विधायक,सांसद और मंत्री पद भोगने वाले जनप्रतिनिधियों को एक नहीं बल्कि एक से अधिक पेंशन दी जा रही है जबकि जनप्रतिनिधित्व कोई नौकरी नहीं जनसेवा है लेकिन 30 से 40 साल तक सरकारी कर्मचारी के रूप में अपनी सेवाएँ देकर अपना जीवन समर्पित करने वाले कर्मचारियों को दी जाने वाली पेंशन बन्द कर दी गई है जो एक लोकतांत्रिक देश में व्यवस्थापिका और सरकार के अन्य स्तम्भों के बीच गहरी खाई खोदने का काम कर रही है वहीं इसका सीधा व प्रतिकूल असर पड़ रहा है आम जनता और सरकार पर फिर भी जिम्मेदार मूक बने हुए हैं जबकि इस तरह की दोगली नीति स्पष्ट रूप से भेदभाव को दर्शा रही है जिसके दूरगामी परिणाम अच्छे नहीं रहने वाले हैं।व्यवस्थापिका कानून व नियम बनाने वाली संस्था है जिसने दोहरा मापदंड अपनाते हुए जनप्रतिनिधियों की पुरानी पेंशन योजना को यथावत रखते हुए केवल सरकारी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बन्द करके कर्मचारियों को ही आर्थिक संकट में डाल दिया है जबकि सरकारों की किसी भी तरह की योजना को अमलीजामा पहनाने का काम उसी कर्मचारी द्वारा किया जाता है जिसका भविष्य सरकारों ने असुरक्षित कर दिया है।एक ओर जहाँ आम जनता रिश्वतखोरी की चपेट में आ गई है और सरकार से प्राप्त होने वाले उसके खुद के स्वत्वों की राशि पर डाका डालकर हड़पने के किस्से आम होते जा रहे हैं वहीं भ्रष्टाचार के कारण सरकारी खजाने को चूना लगाया जा रहा है तो ऐसे कारनामों से सरकारें भी बदनाम हो रही है लेकिन जिम्मेदारों को समझ में नहीं आ रहा है कि दिनों दिन बढ़ती जा रही रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के पीछे की मूल वजह कर्मचारियों का असुरक्षित महसूस किया जाने वाला भविष्य ही है।गौरतलब है कि वर्ष 2005 से सरकारी नौकरी में शामिल होने वाले कर्मचारियों की पुरानी पद्धति की पेंशन बन्द कर नई पेंशन योजना लागू की गई जबकि मध्यप्रदेश में ही लाखों कर्मचारी ऐसे भी हैं जो 2005 से पहले ही विभिन्न सरकारी महकमों में अपनी सेवाएँ दे रहे हैं उन्हें भी पुरानी पेंशन से वंचित कर दिया गया है जिसके परिणामस्वरूप अदालतों में पुरानी पेंशन प्राप्त करने के लिए हजारों याचिकाएँ लगी हुई हैं।मध्यप्रदेश में तो हालात ओर ज्यादा खराब हैं क्योंकि सचिवालय और मंत्रालय में ऊँचे पदों पर कार्यरत अधिकारी केवल इसी प्रकार के नए नए तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं जिनसे छोटे कर्मचारियों को तय मापदण्डों से भी कम से कम आर्थिक लाभ मिले और इन्हीं कारणों से मध्यप्रदेश सरकार के कर्मचारियों को वर्तमान में केन्द्र सरकार सहित अन्य राज्यों की सरकारों के कर्मचारियों की तुलना में जहाँ 11 प्रतिशत महँगाई भत्ता कम दिया जा रहा है वहीं अन्य राज्यों या केन्द्र सरकार की अपेक्षा वेतनमान व वेतनश्रेणियाँ भी ऐसी हैं जो पूरे भारत में कहीं नहीं है।जब कर्मचारियों के आर्थिक हितों की बात सामने आती है तो सरकार खजाना खाली होने की बात कहती है लेकिन जनकल्याणकारी योजनाओं के नाम पर बिना किसी काम के लोगों को रुपये बाँटने,सरकारी प्रचार एवं जनप्रतिनिधियों और उच्च पदों पर आसीन अधिकारियों के ऐशो आराम व शाही खर्च के लिए तो सरकार का खजाना भरा पड़ा है।सरकार की इन्हीं दोगली नीतियों के कारण रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार की जड़ें मजबूत होती जा रही है जिसके दूरगामी परिणाम अच्छे नहीं होंगे।