logo

जीवन में कल्याण की भावना रखें--श्री आलेख मुनि जी

कुकडेश्वर अनादि काल से जीव की इच्छा  वस्तुओं से जुड़ी रहती भव बदलते रहते इच्छा का गणित कभी नहीं बदलता जो कुछ प्राप्त होता वो उस भव के अनुरुप जीव इच्छा जुड़ जाती है। मनुष्य भव में मनुष्य के अनुसार र्तीरच्य में भव के अनुसार जो मिलना था वह मिला भव के फेरो के साथ  समझ का फेरा भी हो जाता है। उक्त बात जैन स्थानक भवन में संत श्री आलेख  मुनि जी ने श्रावक श्राविका  से कहे आपने बताया कि जो भव हमें मिला हमारी समझ उसमें बदल जाती हमें प्रमोशन में खुशी होती अवनति में दुख होता, जीव उन्नति क्रम में जाता तो पिछले भव का भूल जाता है। जीवन में त्याग भावना जरूरी हमें जो मिला उसमें से छोड़ने की इच्छा करें त्याग भाव के अवसर पर हम हाथ पीछे खींच लेते हैं। क्योंकि जिवन में उदारता की कमी होने से ऐसा होता है।धर्म की पहली इबारत होती है देना बचा बचा कर हमें कहां ले जाना है जो मिला है उसका सदुपयोग कर ले दान की भावना से जीव का कल्याण होगा और दान में भी अभय दान सर्वश्रेष्ठ है।किसी जीव को बचाना तो उसका ही उपकार जन्म जन्म तक तक नहीं भूलेगा जियो कल्याण की भावना के लिए जितना हम कर सकते हैं उतना करें अपनी क्षमता के अनुरूप करें मनुष्य भव में मौका मिला है इसे व्यर्थ ना जाने दें।

Top