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वार्डों से मोहल्लों तक सिमट कर रह गया निकाय चुनाव

चुनावी माहौल में भी पसरा है सन्नाटा

सिंगोली।मध्यप्रदेश में होने जा रहे नगरीय निकायों के चुनावों में अध्यक्ष को जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाने के नियमों में बदलाव क्या किया पूरा निकाय चुनाव ही वार्डों और वार्डों से मोहल्लों तक सिमट कर रह गया जिसके चलते चुनावों की तारीख भले ही नजदीक आते जा रही है लेकिन चुनावी माहौल में फिर भी अब तक तो सन्नाटा ही पसरा हुआ है क्योंकि विभिन्न वार्डों में चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी भी अपने वार्ड के अलावा अन्य कहीं भी ध्यान लगाने के लिए तैयार नहीं है और इन्हीं परिस्थितियों के कारण प्रत्याशियों ने अपने अपने वार्ड में सादगीपूर्वक मतदाताओं से सम्पर्क करने के लिए व्यक्तिगत रूप से घर घर दस्तक देना शुरू कर दिया है।भले ही कुछ वार्डों में प्रत्याशियों द्वारा अपने अपने चुनावी कार्यकाल खोलना शुरू कर दिया है फिर भी इस बार के चुनाव में लगभग सभी प्रत्याशी फूँक फूँक कर कदम उठा रहे हैं और इसी के चलते कुछ वार्डों में प्रत्याशियों द्वारा बगैर किसी लाव लश्कर,बगैर ढोल ढमाकों एवं बिना किसी दिखावे के अपने पक्ष में खुद के लिए बड़ों से आशीर्वाद और युवाओं से सहयोग माँगने के लिए मतदाताओं से सम्पर्क करना शुरू कर दिया है जबकि उसी वार्ड में निवास करने वाले प्रत्याशी चुनावी कार्यालय के शुभारम्भ को लेकर पशोपेश में दिखाई दे रहे हैं और यह सब कुछ इसलिए हो रहा है क्योंकि इन चुनावों में नगर परिषद के अध्यक्ष पद का निर्वाचन जनता द्वारा नहीं किया जाकर वार्ड से निर्वाचित होने वाले पार्षदों द्वारा ही किया जाएगा जबकि पिछले अर्थात 2014 के निकाय चुनावों में अध्यक्ष पद के प्रत्यक्ष निर्वाचन की वजह से एक अलग ही प्रकार का चुनावी माहौल था लेकिन अब हालात बदल गए हैं और वार्डों से मोहल्लों तक सिमटे इन चुनावों में भले ही प्रचार प्रसार का दिखावा और शोर शराबा नदारद है फिर भी मतदाताओं की तो अपनी अहमियत रहने वाली है इसी कारण प्रत्याशियों की अपने अपने वार्ड के प्रत्येक मतदाता पर नजर है और प्रत्याशियों ने मतदाताओं पर अभी से डोरे डालना भी शुरू कर दिया है।उल्लेखनीय है कि चुनाव प्रचार के लिए आज से केवल 6 दिन का समय शेष बचा है लेकिन दोनों प्रमुख प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों भाजपा और कांग्रेस की संगठनात्मक उपस्थिति भी कहीं नहीं दिखाई दे रही है तथा पार्टी कार्यकर्ताओं में भी उत्साह का अभाव साफ तौर पर देखा जा सकता है जबकि चुनाव तो दलीय आधार पर ही हो रहे हैं

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