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धर्म तो आत्मा का स्वभाव है- श्री चंद्रसेनजी

    
सिंगोली (निखिल रजनाती)। श्री कुंद कुंद कहान दिगम्बर जैन धार्मिक ट्रस्ट से प्राप्त जानकारी के मुताबिक 31 अगस्त बुधवार से शुरू हुए दिगम्बर जैन समाज के दश लक्षण पर्व पर यहाँ विभिन्न धार्मिक आयोजन प्रतिदिन सम्पन्न हो रहे हैं जिसके तहत इसी श्रृंखला में श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर सिंगोली में 02 सितम्बर शुक्रवार को आर्जव धर्म के विषय पर विचार व्यक्त करते हुए श्रद्धेय त्यागी श्री चंद्रसेनजी ने बताया कि आर्जव धर्म तो मन,वचन और काया की अवक्रता यानि सरलता ऋजुता मायाचारी से रहित अवस्था का नाम आर्जव धर्म है।आप सभी अनादि से इस रुठे हुए धर्म को मनाते आये हो पर क्या कारण है कि यह धर्म आजतक मनाने पर भी मना नहीं है।त्यागी जी ने बताया कि धर्म क्या है?यह क्यों नहीं हमारे जीवन में आता है?इस कला से अनजान धर्म के नाम पर कुछ भी करते रहने का नाम धर्म नहीं है।चन्द्रसेनजी ने कहा कि धर्म तो आत्मा का स्वभाव है।इस जीव ने आत्मस्वभाव को तिरोभाव कर शरीर और रागादि का प्रादुर्भाव कर रखा है जब हम अपने आत्मभाव,सम्यक दर्शन,ज्ञान चरित्र का प्रादुर्भाव करते हैं तो हमारी पर्याय में मोह,राग,द्वेष से रहित साम्यभाव प्रकट होता है यही सच्चा धर्म है।आपके द्वारा सभी को साम्यता को प्राप्त करने की प्रेरणा दी जा रही है।रात्रि में ब्रह्मचारी राहुल भैया द्वारा भी पद्मपुराण के आधार पर राम चरित्र का वर्णन किया जा रहा है।

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